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जैन योग
कुछ आदमी बड़प्पन की भावना की बीमारी से ग्रस्त हैं। वे अपने आपको बड़ा मानते है । यह एक मानसिक विकृति है । कुछ आदमी छुटपन की बीमारी से ग्रस्त होते हैं । वे मानते हैं- 'मैं तो बहुत छोटा हूं। मैं दुर्बल हूं। मैं कमजोर हूं। मैं यह नहीं कर सकता । मैं वह नहीं कर सकता ।' वे हर स्थान में अपनी दुर्बलता, अपनी हीनभावना का अनुभव करते हैं। यह भी एक मानसिक विकृति है, मानसिक बीमारी है । इस प्रकार कहीं बड़प्पन की बीमारी है तो कहीं छुटपन की बीमारी है कहीं अहंभावना की बीमारी है तो कहीं हीनभावना की बीमारी है । मनुष्य जब बड़प्पन की भावना से ग्रस्त होता है तब भी वह स्वस्थ नहीं है और जब वह हीनभावना से ग्रस्त होता है तब भी वह स्वस्थ नहीं है ।
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प्रतिशोध : मन का विकार
तीसरी विकृति है -प्रतिशोध की भावना । कुछ लोग इस भावना से पीड़ित हैं । किसी के द्वारा जाने-अनजाने अप्रिय व्यवहार हो जाने पर व्यक्ति में बदले की भावता जागृत हो जाती है । वह सोचता है - ' मैं इसका बदला लेकर ही रहूंगा । जब तक बदला नही लूंगा तब तक चोटी नही बांधूगा । यह खुली ही रहेगी ।' महामंत्री चाणक्य ने यही संकल्प किया था कि जब तक नंद साम्प्रज्य से बदला नहीं ले लूंगा तब तक मेरी चोटी खुली ही रहेगी, बंधेगी नहीं । उसने बदला लेकर ही चोटी बांधी ।
प्रतिशोध की भावना इतनी तीव्र होती है कि जब तक बदला नहीं लिया जाता तब तक व्यक्ति को शांति नहीं मिलती । किसी व्यक्ति ने कहीं थोड़ासा तिरस्कार कर दिया और वह अपने अवज्ञा के भाव को स्वीकार न कर ले तब तक शांति नहीं मिलती और यदि वह स्वीकार मात्र कर लेता है, तो इसमें दूसरे व्यक्ति को कुछ भी प्राप्त नहीं होता, फिर भी उसे लगता है कि आज परम विजय पा ली है और मैं विजेता बन गया हूं । यह प्रतिशोध की भावना मन मी एक विकृति है, बीमारी है ।
आक्रमक भावना : एक पागलपन
मन की एक विकृति है - आक्रमण की भावना । मनुष्य में आक्रमण की
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