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साधना की पृष्ठभूमि
३३ कर्म है अचेतन और मूर्त | मूर्त का अमूर्त के साथ सबंध कैसे हो सकता है ? क्या कोई संबंध है इनमें ? यदि कोई भी संबंध नहीं है, तब तो कोई चिंता की बात नहीं है । कर्म अपने में और जीव अपने में दोनों अलग-अलग हैं तो कोई बात नहीं । चिंता तब होती है जब कोई संबंध स्थापित होता है, कोई जुड़ता है । यदि संबंध है तो फिर प्रश्न होता है कि यह संबंध कैसे हो सकता है ? चेतन का अचेतन के साथ संबंध कैसे होगा । मूर्त का अमूर्त के साथ और अमूर्त का मूर्त के साथ संबंध कैसे होगा ? यह एक बहुत बड़ी पहेली सामने आती है । हम इसे अस्वीकर नहीं करेंगे कि जीव और कर्म में कोई संबंध नहीं है । यदि संबंध को स्वीकार न करें तब तो कर्म को स्वीकार करने का कोई अर्थ ही नहीं होता । हम यह स्वीकार करेंगे कि जीव और कर्म में संबंध है | इस स्वीकृति के पश्चात् हमें दूसरे प्रश्न पर विचार करना होगा कि संबंध है तो वह कैसे स्थापित हुआ ? अमूर्त और मूर्त में संबंध स्थापित होता है चेतन और अचेतन में संबंध स्थापित होता है और हम इसका अनुभव भी करते हैं । संबंध स्थापित हुआ है एक माध्यम के द्वारा और वह माध्यम है - स्वयं मूर्त होने का । चेतन अमूर्त है - यह एक सिद्धांत है । किंतु अमूर्त हो गया - यह सही नहीं है । अमूर्त है - यह तो भविष्य की एक कल्पना है। जिस दिन जीव अपने स्वरूप में प्रतिष्ठित होगा, उस दिन चेतन अमूर्त हो जाएगा । किंतु वह अमूर्त है, यह हमारी वार्तमानिक मान्यता है । जो शरीरधारी जीव है, वह अमूर्त नहीं है। मर जाने के बाद भी, स्थूल शरीर छोड़ देने के बाद भी यह जीव सूक्ष्म शरीर के बंधन से मुक्त नहीं होता, उस जीव को हम अमूर्त कैसे मानें? ऐसा मानने का कोई कारण नहीं है। जिस दिन यह सूक्ष्म शरीर छूट जाएगा, हमारा जीव अमूर्त बन जाएगा । जिस दिन वह अमूर्त बन जाएगा, फिर मूर्त के साथ उसका संबंध कभी स्थापित नहीं होगा । वर्तमान में यह जीव अमूर्त नहीं है । वह मूर्त है क्योंकि सूक्ष्म शरीर दो हैं - तैजस और कार्मण । कार्मण शरीर अर्थात् कर्म का शरीर ही कर्म को खींचता है । कर्म- शरीर ही कर्म को पकड़ता है । कर्म-शरीर ही शरीर को बाँधता है । जीव कर्म को न खींचता है, न पकड़ता है और न बांधता है । सूक्ष्म शरीर को समझ लेने के पश्चात् कर्म की पूरी कल्पना स्पष्ट हो जाती है ।
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