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साधना की पृष्ठभूमि - २९ कुछ भी घटित होता है उसके पीछे एक कारण होता है, एक कार्य होता है । जो कारण है वह आस्रव है और जो कार्य है वह कर्म है ।
हम कुछ भी करते हैं उसकी पुनरावृत्ति होती है । क्रिया की प्रतिक्रिया होती है । हमने एक प्रवृत्ति की । प्रवृत्ति समाप्त हो गई, कितु इसकी प्रतिक्रिया समाप्त नहीं हुई । ध्वनि समाप्त हो गई, किंतु प्रतिध्वनि समाप्त नहीं हुई। ध्वनि की प्रतिध्वनि रह जाती है । हम गहरे कुंए में झांककर बोलते हैं, प्रतिध्वनि होती है । मकान के भीतर जाकर बोलते हैं, प्रतिध्वनि होती है । प्रतिध्वनि लम्बी होती है, ध्वनि छोटी होती है। क्रिया छोटी होती है, प्रतिक्रिया लम्बे समय तक चलती रहती है । छोटी क्रिया, बड़ी प्रतिक्रिया । क्रिया की प्रतिक्रिया, ध्वनि की प्रतिध्वनि, प्रवृत्ति की प्रति-प्रवृत्ति होती है, पुनरावृत्ति होती है । बार-बार दोहराई जाती है । क्रिया एक : प्रतिक्रिया अनेक ___एक आदमी कोई चीज खाता है । उसने खा ली । बात समाप्त हो गई। किन्तु यथार्थ में बात समाप्त नहीं हुई । खाना बंद हो गया किंतु एक बार जो खाया वह मस्तिष्क के स्मृति-कोष्ठों में अंकित हो गया । वह समाप्त नहीं हुआ | वह अपना संस्कार छोड़ गया । एक वृत्ति बन गई । एक प्रतिक्रिया शेष रह गई । फिर जैसे ही निमित्त मिलता है, समय आता है, स्मृति उभर आती है, वृत्ति उभर आती है । फिर उस वस्तु की याद आते ही, उसके सामने आते ही जीभ से पानी टपकने लगता है । लार टपक पड़ती है । क्रिया तो समाप्त हो गई, प्रतिक्रिया समाप्त नहीं हुई । वह चलती रहती है । उसकी श्रृंखला बहुत लम्बी है । इतनी लम्बी श्रृंखला है कि एक बार के कारण वह हजार बार भी दोहरा ली जाती है । इसलिए महावीर ने कहा-एक बार भी भूल मत करो। यह अप्रमाद का सिद्धांत है । प्रमाद मत करो, भूल मत करो। क्योंकि एक बार का प्रमाद या भूल हजार बार भी दोहराई जा सकती है, इसलिए एक बार भी भूल मत करो, प्रमाद मत करो । अन्यथा बार-बार उसकी आवृत्तियां होती रहेंगी। कर्मः प्रतिक्रिया का सिद्धांत
कोई आदमी प्रवृत्ति नहीं करता तो उसका संस्कार भी नहीं बनता ।
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