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प्रतिक्रियावाद : कर्म
दो महत्त्वपूर्ण खोजें: आत्मा और कर्म
भारतीय दार्शनिकों ने कुछ महत्वपूर्ण खोजें की हैं । उनमें सबसे महत्त्वपूर्ण खोज है आत्मा । आत्मा की खोज ने सचमुच दर्शन के क्षेत्र में एक बहुत बड़ी क्रांति की । चैतन्य की स्वतंत्र सत्ता का अनुभव जिस दिन हुआ उस दिन एक बहुत बड़ी उपलब्धि हुई। उस दिन उस तत्त्व का अनुभव किया जो अज्ञात था, अमूर्त था, जिसे चर्म चक्षुओं से नहीं देखा जा सकता था । आत्म-तत्त्व की स्थापना हुई, चैतन्य की स्वतंत्र सत्ता स्थापित हुई ।
दूसरी महत्त्वपूर्ण खोज है-कर्म कर्म की खोज ने बहुत बड़े सत्य का उद्घाटन किया । आत्मा और कर्म इन दो उपलब्धियों ने अध्यात्म के क्षेत्र को बहुत विस्तार दिया ।
अध्यात्म के मूलभूत आधार दो हैं- आत्मा और कर्म । यदि हम आत्मा और कर्म को हटा लें तो अध्यात्म आधारशून्य हो जाता है। उसका कोई आधार नहीं रह पाता । अध्यात्म की समूची योजना, समूची परिकल्पना और व्यवस्था इस आधार पर है कि आत्मा को कर्म से मुक्त करना है । यदि आत्मा नहीं है तो किसे मुक्त किया जाए ? यदि कर्म नहीं हैं तो किससे मुक्त किया जाए ? कोई व्यवस्था नहीं बनती । 'आत्मा को कर्म से मुक्त करता है' इस सीमा में समूचा अध्यात्म समा जाता है ।
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