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साधना की पृष्ठभूमि - ११ कर देना साधना का उद्देश्य नहीं है । उसका उद्देश्य है वास्तविक मूल्य की प्रतिष्ठापना और काल्पनिक या आरोपित मूल्य का विघटन । जो आदमी धन का यथार्थ मूल्य नहीं जानता, वह उसका सही उपयोग नहीं कर पाता किंतु उसमें आसक्त होकर उससे प्रताड़ित होता है, उसे अशांति का निमित्त बना लेता है । यही बात शरीर, भोजन आदि पदार्थों के लिए घटित होती है ।
उपनिषदों में शरीर को रथ और उसमें विराजमान चेतन को रथिक कहा गया है । आगम-सूत्रों में शरीर को नौका और उसमें विराजमान चेतन को नाविक कहा गया है । वह नाविक इसी नौका के द्वारा दुःख के सागर को पार करता है।
अध्यात्म जीवन की सबसे बड़ी कला है | जो आदमी अध्यात्म की कला से अभिज्ञ नहीं है वह अन्य सब कलाओं का पारगामी होने पर भी जीवन की कला से अनभिज्ञ नहीं है । मैं फिर एक बार उस तथ्य को दोहराना चाहता हूँ कि शांति और सुख की उपलब्धि के लिए अपनी खोज उतनी ही अनिवार्य है जितना अनिवार्य है स्वास्थ्य के लिए समीचीन श्वास |
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