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________________ साधना की पृष्ठभूमि ९ होने वाला उसका कोई निश्चित सिद्धांत नहीं है । वह व्यक्तिगत प्रश्न है । इस समस्या पर विचार करता हूं तब चेतन और अचेतन जगत् की भेदरेखा बहुत स्पष्ट रूप में दृष्टि के सामने उभर आती है । अचेतन में अपनी इच्छा, अपनी प्रवृत्ति और उसका परिणाम नहीं है, इसलिए उसके लिए एक सामान्य नियम की संरचना की जा सकती है किंतु चेतन जगत् में व्यक्ति-व्यक्ति की अपनी इच्छा, अपनी प्रवृत्ति और उसका परिणाम होता है, इसलिए उनके लिए किसी सामान्य नियम की संरचना नहीं की जा सकती । चेतन के विकास में बाह्य परिस्थितियां और आंतरिक क्षमता दोनों संयुक्त रूप में घटक का काम करते हैं। मनुष्यों में क्षमताओं का तारतम्य इसीलिए है कि वे चेतन हैं और चेतन होने के कारण क्रिया करने में स्वतंत्र हैं । स्वतंत्र अस्तित्व किसी एकात्मक नियम की अपेक्षा नहीं रखता अपनी खोज : एक प्रक्रिया अपनी खोज के प्रसंग में स्वतंत्रता - जनित तारतम्य को समझना बहुत जरूरी है । कुछ लोग अपनी खोज में प्रवृत होते हैं और अल्पकाल में ही सफल हो जाते हैं । कुछ लोग बहुत लम्बे समय के बाद सफल होते हैं । कुछ लोग लम्बी अवधि से घबराकर उसे बीच में ही छोड़ देते हैं । इस प्रकार अपनी खोज की अनेक कोटियां हो जाती हैं । यद्यपि अपनी खोज की सामान्य पद्धति की स्थापना करना कठिन है, फिर भी सामान्य पद्धति का निर्देश किये बिना काम नहीं चल सकता | यह लम्बी चर्चा मैंने इसलिए की है कि अपनी खोज में लगने वाले लोग सामान्य पद्धति और सामान्य परिणाम की संभावना न देख उससे विरत न हो जाएं । कुछ लोगों की यह जिज्ञासा है कि जिस प्रकार बी०ए०, एम० ए० का निश्चित पाठ्यक्रम है उसके अनुसार पढ़ने वाला विद्यार्थी अमुक अवधि में उन परीक्षाओं में उत्तीर्ण हो जाता है, इस प्रकार अध्यात्म-साधना का कोई निश्चित क्रम नहीं है, जिससे साधक में यह विश्वास जाग जाए कि वह अमुक अवधि में अमुक कक्षा तक पहुंच जाएगा । उक्त जिज्ञासानुसारी पाठ्यक्रम निश्चित करना मुझे असंभव नहीं लगता । अमुक अवधि में अमुक कक्षा तक पहुँच जाना भी असम्भव नहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002746
Book TitleJain Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size10 MB
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