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८ जैन योग
करने से वंचित रह रहे हो । तुमने मन को जागृत करने का कोई प्रयत्न नहीं किया, इसलिए तुम मन की असीम शक्तियों में विश्वास करने के लिए दरिद्र हो । तुम्हारी इस अहेतुक दरिद्रता के प्रति मेरे मन में करुणा है, इसलिए मैं कह रहा हूँ कि तुम स्वयं जागो और अपनी सुप्त शक्तियों को जगाओ। मैं यह जानता हूँ कि शक्ति के जागरण की प्रक्रिया को जाने बिना कोई भी आदमी उन्हें जागृत नहीं कर सकता । मैं अभी तुम्हें यह नहीं बताऊंगा कि शरीर और मन के भीतर छिपी शक्तियों को कैसे अनावृत किया जा सकता है । सुप्त शक्तियों को कैसे जागृत किया जा सकता है, अभी इसे बताने का कोई विशेष अर्थ ही नहीं होगा। अभी मेरा लक्ष्य एक ही है, और वह है- आंतरिक शक्तियों के प्रति तुम्हारे मन में अभीप्सा उत्पन्न करना । उनके प्रति तुम्हारे अज्ञान और संदेह को दूर करना ।
अज्ञात के प्रति संदेह होना अस्वाभाविक नहीं । तुम्हें तुम्हारी शक्तियां ज्ञात नहीं हैं, इसलिए उनके प्रति तुम जो संदिग्ध हो, वह मेरे लिए आश्चर्य की बात नहीं है । मुझे आश्चर्य तब होता है जब इन शक्तियों से अपरिचित आदमी इनके होने में संदेह नहीं करता ।
अपना क्या है ?
प्रस्तुत चर्चा में शरीर और मन की शक्तियों का विश्लेषण करना मेरा उद्देश्य नहीं है । यह चर्चा मैंने प्रासंगिक रूप में या एक उदाहरण के रूप में की है । मैं जो कहना चाहता हूं वह यह है कि जब शरीर और मन की प्रवृत्ति विसर्जित हो जाती है उस समय शांति और सुख का ऐसा स्रोत प्रकट होता है, जिसकी साधारण स्थिति में तुम कल्पना भी नहीं कर सकते । किंतु शरीर और मन की शक्तियों से अपरिचित होने की स्थिति में उनके विसर्जन से प्रकट होने वाली शांति के प्रति तुम कैसे आश्वस्त हो सकते हो ? तुम पूछ सकते हो कि अपना क्या है, और इसकी खोज कैसे की जा सकती है ? अपना क्या है, यह मैं इसी लेख में बतलाने वाला हूँ । किंतु उसकी खोज की पद्धति बतलाना किंचित् कठिन है । अपनी खोज की परंपरा हजारों वर्ष पुरानी है । फिर भी आश्चर्य है कि आज तक उसकी कोई निश्चित पद्धति निर्धारित नहीं हुई है । भौतिक सिद्धांत की भांति सब पर समान रूप से घटित
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