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साधना की पृष्ठभूमि - ७ हूं | शरीर-वर्ग में दोनों शरीर समाविष्ट हो जाते हैं। प्राण और मन में घनिष्ठ संबंध है, इसलिए प्राण मन के द्वारा संगृहीत हो जाता है । तुम इस तथ्य से भली-भांति परिचित हो कि शरीर में रोग पैदा होते हैं और मन में भी रोग पैदा होते हैं । किन्तु तुम इस तथ्य से परिचित नहीं हो कि शरीर और मन में रोग का उपचार भी सन्निहित है । भूख और प्यास का उपचार भी सन्निहित है । सर्दी और गर्मी का प्रभाव शरीर पर होता है, पर सर्दी और गर्मी के नियंत्रण की क्षमता भी शरीर और मन में सन्निहित है । अतिश्रम
और स्नायविक तनाव का प्रभाव शरीर और मन पर होता है और इनका उपचार भी शरीर और मन में सन्निहित है । यह कहना अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं होगा कि शरीर और मन पर होने वाले हर विकार का उपचार उन (शरीर
और मन) में सन्निहित है। जागो : जगाओ
तुम अपनी आंतरिक शक्ति मे परिचित नहीं हो, इसलिए उसका उपयोग करने में सक्षम नहीं हो । बरगद का बीज कितना छोटा होता है | वह शतशाखी हो सकता है, उसके आकार को देखकर यह अनुमान करना कठिन है । किन्तु जब औपधिक अहं को विसर्जित कर भूमि के प्रति सर्वात्मना समर्पित हो जाता है तब वह उस ऊंचाई और विस्तार को प्राप्त करता है जिसकी उसके लघु आकार में संभावना नहीं की जा सकती ।
शरीर की शक्ति फिर भी सीमित है | मन की शक्ति असीम है । मन का शक्तिस्रोत आत्मा है | उसमें अनंत शक्ति विद्यमान है । मूल का सौंदर्य तब तक प्रकट नहीं होता, जब तक वह पूर्ण रूप में विकसित नहीं हो जाता । हाथी और घोड़े अभिवादन करते हैं, पर वे ही करते हैं जो शिक्षित होते हैं । मनुष्य देखता है और बातचीत करता है। किंतु सुप्त अवस्था में वह न देखता है और न बातचीत करता है । जागरण, शिक्षण और विकास की अवस्था में जो प्रकट होता है वह निद्रा, अशिक्षा और सिकुड़न की अवस्था में नहीं होता ।
तुम अप्रिय मत मानना । तुमने शरीर को शिक्षित करने का कभी प्रयत्न नहीं किया, इसलिए तुम शरीर के भीतर छिपी हुई महान् शक्तियों का उपयोग
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