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६ जैन योग
और सुख हैं तो तुम 'मेरी बात पर विश्वास नहीं करोगे। तुम मुझ पर विश्वास नहीं करोगे, उसके लिए मैं तुम्हें दोष नहीं दूंगा, क्योंकि उस अविश्वास के लिए तुम अपराधी नहीं हो । वह अविश्वास अकारण नहीं है । तुम्हारे तथा शांति और सुख के बीच में कई सुदृढ़ दीवारें हैं । तुम्हारी दृष्टि पारदर्शी नहीं है, जो दीवारों को भेदकर तुम उस पार देख सको । पहली दीवार यह है कि तुम्हें अपने भीतर की संपदा की जिज्ञासा नहीं है । दूसरी दीवार यह है कि तुम्हें अपनी भीतर की सपंदा में विश्वास नहीं है । तीसरी दीवार यह है कि तुममें अपनी भीतरी संपदा तक पहुँचने के लिए दृढ़ संकल्प, प्रयत्न और तन्मयता नहीं है । इस स्थिति में यदि तुम मेरी बात पर अविश्वास करोगे तो मुझे खेद नहीं होगा ।
एक प्रसिद्ध उक्ति है कि कस्तूरी की गंध को मनवाने के लिए सौगन्ध खाने की आवश्यकता नहीं है - " नहि कस्तूरिकागंधः शपथेनानुभाव्यते ।" यही उक्ति यहाँ लागू होती है कि आत्मा के भीतर शांति और सुख की अजस्र धारा बह रही है, उसे मनवाने के लिए मुझे सौगंध खाने की आवश्यकता नहीं है । कस्तूरी को घिसने की जरूरत है । सुगन्ध अपने आप फूट जाएगी । अगरबत्ती को जलाने की जरूरत है, सुगन्ध अपने आप फूट जाएगी । 'अहं' और 'मम' को घिसो और जलाओ, वे दीवारें अपने आप ढह जाएंगी और उनकी ओट में बहने वाली शांति और सुख की धारा गहराई से सतह तक पहुँच जाएगी ।
हर आदमी पानी पीता है, इसलिए वह जानता है कि पानी पीने से प्यास बुझती है। हर आदमी रोटी खाता है, इसलिए वह जानता है कि रोटी खाने से भूख शांत होती है । रोटी और पानी तथा उनकी क्रिया-प्रतिक्रिया प्रत्यक्ष है, इसलिए हर आदमी उसे जानता है । पानी पिए बिना भी प्यास बुझ सकती है और रोटी खाए बिना भी भूख शांत हो सकती है, यह बात प्रत्यक्ष अनुभव में नहीं है । इसलिए इसे मानने के लिए कोई तैयार नहीं है । हमारी आत्मा के साथ चार वस्तुएं संबंध स्थापित किए हुए हैं : १. सूक्ष्म शरीर, २. स्थूल शरीर, ३. प्राण, और ४. मन ।
प्रतिपादन की सुविधा के लिए मैं इनको दो वर्गों में संगृहीत कर लेता
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