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साधना की पृष्ठभूमि ५ मन में शान्ति नहीं है । और शांति नहीं है इसलिए सुख भी नहीं है ।" मैंने उस पर एक गहरी दृष्टि डाली और कहा- “शांति और सुख तुम्हारे भीतर है, फिर तुम दुःख का भार क्यों ढो रहे हो ?” मेरी बात सुन वह आश्चर्य में डूब। वह बोला- “यदि मेरे भीतर ही शांति और सुख होते तो मैं दुःख का भार क्यों ढोता ?" मैने कहा - "मुझे लगता है कि तुम वास्तव में दुःखी नहीं हो । तुम्हारे दुःख का मूल तुम्हारा अज्ञान है । तुम्हारी अशांति का मूल तुम्हारा अपने आप से परिचित नहीं होना है । दूसरों के कपड़ों को पहनकर आदमी कितने समय तक सौंदर्य का प्रदर्शन कर सकता है | बाहरी वस्तुओं के संचय के बल पर आदमी कब तक शांति का अनुभव कर सकता है ? तुम अपने अंतर की खोज करो, अभीप्सा को तीव्र करो और गहरे में उतर जाओ । अनुभूति को तीव्र करो और हृदय की गहराई में उतर जाओ । गहराई, गहराई और गहराई में इतने उतरो कि तुम चारों शिलाखंडों को हटा, उनके पार जा सको ।"
ज्ञान का आवरण - यह पहला शिलाखंड है ।
दर्शन का आवरण - यह दूसरा शिलाखंड है ।
सुख की चेतना का आवरण - यह तीसरा शिलाखंड है । शक्ति का अवरोध - यह चौथा शिलाखंड है ।
वह ध्यान के द्वारा उन चारों शिलाखंडों को हटा भीतर गया तो उसने देखा कि शांति की अतल गहराई में सुख का सागर लहरा रहा है ।
शांति पर किसी व्यक्ति का एकाधिकार नहीं है । सुख पर किसी व्यक्ति का एकाधिकार नहीं है । वे सार्वजनिक हैं । उन सबके पास हैं, जिनके पास चेतना है । उन सबको प्राप्त हैं, जिन्होंने अपने भीतर खोजा है और गहराई में उतरने में सफल हुए हैं ।
पारदर्शी दृष्टि
तुम मुझसे पूछोगे और किसी बात को छिपाए बिना पूछोगे कि क्या हमारे भीतर शांति और सुख है ? मैं इसका उत्तर देने में बड़ी कठिनाई अनुभव कर रहा हूं । यदि मैं कहूँ कि तुम्हारे भीतर शांति और सुख नहीं है तो मैं सत्य के साथ न्याय नहीं करूँगा । और यदि मैं कहूँ कि तुम्हारे भीतर शांति
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