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४ - जैन योग हो गया । मकान को खा नहीं सकता । खाने के लिए पैसा नहीं है, इसलिए भीख मांगनी पड़ रही है ।"
ज्योतिषी ने फिर वेधक दृष्टि देखा । वह बोला-“मेरी विद्या कहती है, तुम दरिद्र नहीं हो ।' भिखारी ने कहा-“महाराज ! जो हूँ वह सामने हूं, मैंने कुछ छिपा नहीं रखा ।"
ज्योतिषी कोई साधारण ज्योतिषी नहीं था । वह अष्टांग निमित्त को जानता था । उसने विद्या के बल पर भूगर्भ को देखा । उसने भिखारी से कहा- “जाओ, तुम एक कुदाली ले आओ ।'' वह पड़ोसी के घर से एक कुदाली ले आया । ज्योतिषी ने कहा-“पूर्व के कोने में जो कमरा है उसके मध्य भाग को खोदो।' भिखारी ने उसे खोदा । खुदाई में कुछ भी नहीं निकला । वह बोला-“महाराज ! यहाँ क्या मिलेगा ? मैं थक गया हूँ । आप मुझे आज्ञा दें कि मैं इसे खोदना बंद कर दूँ ।' ज्योतिषी बोला-“अभी तुम ऊपर-ऊपर चल रहे हो । थकने से काम नहीं चलेगा। अभी तुम्हें काफी गहराई में जाना होगा ।'' भिखारी ज्योतिषी के विश्वास में आ गया था, इसलिए उसने वैसा ही किया जैसा ज्योतिषी का आदेश था । वह गहरा खोदता गया । उसने देखा-मिट्टी के नीचे एक शिलाखंड है । "महाराज ! अब शिलाखंड आ गया है, इसे हटाना कठिन होगा । क्या मैं इस खुदाई को बंद कर सकता हूँ ?" ज्योतिषी ने कहा-“अभी नहीं । इसे हटाओ, और गहरे में उतरो।" उसने कठोर श्रम किया और उस शिलाखंड को हटा दिया । कुछ अंतराल के बाद दूसरा शिलाखंड आया । उसे भी हटा दिया । दो शिलाखंड और आए, उन्हें भी हटा दिया । जैसे ही उसने चौथा शिलाखंड हटाया वैसे ही ज्योतिषी चिल्ला उठा-“अरे ! मैंने पहले ही कहा था कि तुम दरिद्र नहीं हो । जिसके घर में करोड़ों की संपत्ति छिपी पड़ी है, वह दरिद्र कैसे हो सकता है ?" भिखारी स्तब्ध रह गया । उसे पता ही नहीं था कि उसके घर में इतना सोना, इतने रत्न और इतनी संपदा छिपी पड़ी है । दुःख का मूल : स्व का अपरिचय
एक दिन मेरे पास एक आदमी आया । उसके चेहरे से दुःख टपक रहा था । मैंने उससे पूछा तो उसने बताया कि “मैं दुःखी इसलिए हूँ कि मेरे
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