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अस्तित्व का बोध
वह दरिद्र कैसे ?
"तुम भिखारी नहीं हो, फिर भीख किसलिए मांग रहे हो ?” ज्योतिषी ने कहा । भिखारी बोला - " दरिद्र हूं, खाने को कुछ नहीं है, इसलिए भीख मांग रहा हूं।" ज्योतिषी तेज स्वर में बोला - "तुम दरिद्र नहीं हो, तुम्हारे पास बहुत कुछ है ।" उसने भिखारी की आकृति पर गहरी दृष्टि डाली । भिखारी आश्चर्यपूर्ण दृष्टि से देखने लगा । ज्योतिषी मन-ही-मन सोच रहा था कि यदि यह दरिद्र है तो मेरी विद्या मिथ्या है और यदि मेरी विद्या सत्य है तो यह दरिद्र नहीं हो सकता ।
भिखारी मन-ही-मन सोच रहा था कि मैं दरिद्र हूं और यह मुझे धनी मान रहा है । यह कैसा अजीब आदमी है, इतना भी नहीं समझता कि यदि मैं धनी होता तो भीख क्यों मांगता ?
कुछ देर तक दोनों अपने - अपने चिंतन में डूबे रहे | आखिर ज्योतिषी ने कहा - "चलो, मैं तुम्हारे घर चलना चाहता हूँ ।" दोनों वहां से चले और भिखारी के घर पहुंचे । ज्योतिषी ने उसके विशाल भवन को देखा और उसका विश्वास पुष्ट हो गया । वह बोला- “इतना बड़ा तुम्हारा घर, फिर तुम दरिद्र कैसे ?" भिखारी ने कहा- "महाराज ! यह पुरखों की थाती है । मेरे पूर्वज बहुत वैभवशाली थे । उनका बनाया हुआ यह मकान है। अब धन समाप्त
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