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उट्ठिए णो पमायए । (५/४३)
पुरुष अप्रमाद की साधना में उत्थित होकर प्रमाद न करे ।
जाणित्तु दुक्खं पत्तेयं सायं । (५ / ४४ )
सुख और दुःख व्यक्ति का अपना-अपना होता है - यह जानकर व्यक्ति प्रमाद न करे ।
प्रयोग और परिणाम
अणण्णपरमं नाणो, णो पमाए कयाइ वि ।
आयगुत्ते सया वीरे, जायामायाए जावए || ( ३ / ५६)
ज्ञानी पुरुष परम सत्य के प्रति क्षणभर भी प्रमाद न करे । वह सदा इन्द्रियजयी और पराक्रमीशील रहे, परिमित भोजन से जीवन-यात्रा चलाए । कायोत्सर्ग
६.
नरा मुयञ्चा धम्मविदु अिंजू । (४/२८)
देह के प्रति अनासक्त मनुष्य ही धर्म को जान पाते हैं और धर्म को जानने वाले ही ऋजु होते हैं ।
७.
अनित्य अनुप्रेक्षा
१९५
• से पुव्वं पेयं पच्छा पेयं भेउर-धर्म्म, विद्वंसण-धम्मं, अधुवं, अणितियं, असासयं, चयावचइयं विपरिणाम-धम्मं, पासह एयं रूवं । ( ५ / २९)
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तुम इस शरी को देखो | यह पहले या पीछे एक दिन अवश्य ही छूट जाएगा | विनाश और विध्वंस इसका स्वभाव है । यह अध्रुव, अनित्य और अशाश्वत है । इसका उपचय और अपचय होता है। इसकी विविध अवस्थाएं होती हैं ।
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for कालस्य णागमो । (२ / ६२)
मृत्यु के लिए कोई भी क्षण अनवसर नहीं है । वह किसी भी क्षण आ सकती है ।
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