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प्रयोग और परिणाम - १९३ अतीरंगम हैं-तीर तक पहुंचने में समर्थ नहीं हैं ।
अपारंगम हैं-पार तक पहुंचने में समर्थ नहीं हैं | ३. अंतर्दृष्टि
• से हु विट्ठपहे मुणी, जस्स णत्यि ममाइयं । (२/१५७) ___ वह ज्ञानी है, पथ को देखने वाला है, जिसने ममत्व की ग्रन्थि को छिन्न कर डाला है।
• अग्गं च मूलं च विगिंच धीरे । (३/३४) हे धीर ! तू दुःख के अग्र और मूल का विवेक कर | • अभिभूय अदक्खू, अणभिभूते पभू निरालंबणयाए । (५/११)
सत्य का साक्षात्कार उसी ने किया है जिसने साधना के विघ्नों को अभिभूत किया है । जो बाधाओं से अभिभूत नहीं होता, वही निरालंबी होने में समर्थ होता है।
स्वावलंबी व्यक्ति दूसरों पर निर्भर नहीं होता । वह अपने आप में और अपनी उपलब्धियों में ही सन्तुष्ट रहता है | ४. समत्व
• खणंसि मुक्के । (२/२८) वह क्षणभर में मुक्त हो जाता है । • तम्हा पंडिए णो हरिसे, णो कुज्झे । (२/५१) पंडित पुरुष न हर्षित हो और न. कुपित हो । • उवेहमाणो अणुवेहमाणं बूया-उवेहाहि समियाए । (५/९७)
मध्यस्थभाव रखने वाला व्यक्ति मध्यस्थभाव न रखने वाले से कहे-'तुम सत्य के लिए मध्यस्थभाव का आलंबन लो ।' .
• विस्सेणिं कटु, परिण्णाए । (६/६८)
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