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पद्धति और उपलब्धि
१६३ नियमों का अवबोध है । रेडियो तरंगों के संचार-क्रम के नियमों को नहीं जानने वाला दूर - श्रवण को चमत्कार मान सकता है । उसकी दृष्टि में दूर-दर्शन भी एक चमत्कार ही है । किंतु एक वैज्ञानिक के लिए वह कोई चमत्कार नहीं है । 'क्ष' किरणों के द्वारा ठोस वस्तु के पार देखा जा सकता है तब पारदर्शन की शक्ति को चमत्कार कैसे माना जाए ? हम इस तथ्य को अस्वीकार नहीं करेंगे कि मनुष्य के शरीर में अनेक रासायनिक द्रव्य हैं। वे विविध संयोगों में बदलते रहते हैं । भावना के द्वारा शारीरिक विद्युत् और रासायनिक द्रव्यों में परिवर्तन होता है । ध्यान और तपस्या के द्वारा भी ऐसा घटित होता है । इन आंतरिक परिवर्तनों की रसायनशास्त्र के नियमों द्वारा व्याख्या की जा सकती है | रसायनशास्त्र के सब नियम ज्ञात हो चुके हैं - यह नहीं कहा जा सकता । ऐसे अनेक नियम हो सकते हैं जो आज भी ज्ञात नहीं हैं । सब नियम ज्ञात हो जाएंगे, यह गर्वोक्ति सुदूर भविष्य में भी नहीं की जा सकती । इस स्थिति में जिन आंतरिक ऋद्धियों को हम चमत्कार की संज्ञा देते हैं, इसकी अपेक्षा उचित यह होगा कि उन्हें हम प्रकृति के सूक्ष्म नियमों की जानकारी के फलित की संज्ञा दें | इन ऋद्धियों को आध्यात्मिक कहना भी बहुत संगत नहीं लगता । कुछेक ऋद्धियां आध्यात्मिक हो सकती हैं, जैसे - केवलज्ञान | किंतु ऋद्धियां आध्यात्मिक नहीं हैं । बहुत सारी पौद्गलिक या भौतिक हैं । वे अन्तर्जगत में या आंतरिक साधनों से उपलब्ध होती हैं, इसलिए उन्हें अलौकिक कहा जा सकता है किंतु अपौद्गलिक या आध्यात्मिक नहीं कहा
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जा सकता ।
सही दिशा
दो साधक एक बार मिले । एक को जल पर बैठने की सिद्धि प्राप्त थी । उसने कहा - " आओ, जल पर बैठें ।' दूसरे को आकाश में बैठने की सिद्धि प्राप्त थी । उसने कहा- 'आओ, आकाश में ही बैठें।' अपनी बात को मोड़ देते हुए उसने फिर कहा - 'जल पर बैठने में क्या बड़ी बात होगी ? मछलियां उसी में रहती हैं। आकाश में बैठने का क्या महत्त्व होगा ? पक्षी आकाश में ही रहते हैं । महत्त्व की बात यह होगी कि हम अध्यात्म का और
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