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आंतरिक उपलब्धिां
ऋद्धि और लब्धि
ध्यान, तप और भावना-ये तीनों शक्ति के स्रोत हैं | इनके द्वारा वीतरागता उपलब्ध होती है, चैतन्य का शुद्ध स्वरूप उपलब्ध होता है, मोक्ष उपलब्ध होता है । इनकी धारा जिस दिशा में प्रवाहित होती है, वही दिशा उद्घाटित हो जाती है । इनसे साधक को अनेक प्रकार की ऋद्धियां या लब्धियां भी प्राप्त होती हैं । ये सामान्य व्यक्ति में नहीं होतीं, इसलिए इन्हें अलौकिक या लोकोत्तर कहा जाता है | कुछ लोग इन्हें चमत्कार मानते हैं । पूर्वाभास, दूरबोध, वस्तुओं का इच्छाशक्ति से निर्माण और परिचालन, स्पर्श से भयानक बीमारियों को मिटाना-ये सब चमत्कार जैसे लगते हैं । चमत्कार का खंडन करने वालों का कहना है कि ये बातें नहीं हो सकतीं । ये प्राकृतिक नियमों के विरुद्ध है | जिन लोगों ने ध्यान के क्षेत्र में अभ्यास किया है वे लोग इस चमत्कारवाद को स्वीकार नहीं करते । उनका अभिमत है कि ये सब चमत्कार नहीं हैं । ये सारी घटनाएं प्राकृतिक नियमों के आधार पर ही घटित होती हैं । जिन लोगों को इन विषयों में प्राकृतिक नियमों का ज्ञान नहीं है वे ही इन्हें चमत्कार कह सकते हैं । ध्यान की परंपरा हजारों वर्ष पुरानी है । ध्यान के आचार्यों ने अनेक प्राकृतिक नियमों की खोज की है । यह जो कुछ घटित होता है, वह प्राकृतिक नियमों का उल्लंघन नहीं है, किंतु प्रकृति के सूक्ष्म
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