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पद्धति और उपलब्धि
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दीर्घकालीन ध्यानाभ्यास के बाद चैतन्य केन्द्रों को जागृत कर पाए और यह भी हो सकता है कि वह अपने वर्तमान जीवन में चैतन्य - केन्द्रों को पूरा जागृत करने में सफल न हो पाए । इसका अर्थ शुद्ध ध्यान और शुद्ध लेश्या की व्यर्थता नहीं है । इनके अभ्यास से चैतन्य- केन्द्र जागृत होते ही हैं, किंतु जिस मात्रा में जागृति होनी चाहिए और उनके माध्यम से जो विशिष्ट ज्ञानरश्मियां बाहर फूटनी चाहिए, वे उनके पूर्ण जागृत होने पर ही संभव हो सकती
हैं ।
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