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१५४ - जैन योग तालु, सिर-ये चैतन्य-केन्द्र हैं | आवरण की विशुद्धि होने पर ये जागृत हो जाते हैं, निर्मल हो जाते हैं, और अतींद्रिय ज्ञान की अभिव्यक्ति के माध्यम बन जाते हैं । हमारे शरीर में कुछ ग्रंथियां हैं । उनमें भी विशिष्ट क्षमता है। वे भी परिष्कृत होने पर अतींद्रिय ज्ञान की माध्यम बन जाती हैं । इन ज्ञात चैतन्य केन्द्रों के अतिरिक्त स्थूल शरीर के ऐसे अन्य परमाणु-स्कंध हैं जो अतींद्रिय ज्ञान के माध्यम बनते हैं । परिष्कृत या निर्मल बने हुए परमाणुस्कंधों को स्थूल शरीर में देखा नहीं जा सकता । इसीलिए इन चैतन्य केन्द्रों के विषय में विचार-भिन्नता मिलती है । कुछ लोग इनकी उपस्थिति प्राणशरीर में मानते हैं और कुछ वासना-शरीर में । ये उन दोनों में हो सकते हैं, किंतु प्राण और वासना में होने वाले केन्द्रों के संवादी केन्द्र यदि स्थूल शरीर में न हों तो ज्ञान को अभिव्यक्ति नहीं मिल सकती | इंद्रियज्ञान के केंद्र सूक्ष्म शरीर में होते हैं और उनके संवादी केंद्र हमारे स्थूल शरीर में होते हैं, तभी भीतर की ज्ञान-रश्मियां बाह्य जगत में आती हैं । इन चैतन्य केन्द्रों पर भी यही नियम लागू होता है।
ये चैतन्य केन्द्र नाभि से ऊपर के भाग में होते हैं । ये केन्द्र विशद होते हैं। कुछ चैतन्य केन्द्र नीचे भी होते हैं, वे अविशद होते हैं, इसलिए आध्यात्मिक उत्क्रमण करने वालों के वे नहीं होते |
जैसे इंद्रियों के आकार नियत होते हैं वैसे चैतन्य केन्द्र एक ही आकार के नहीं होते । वे अनेक आकार के होते हैं । जो आकार बतलाए गए हैं उनसे भी भिन्न आकार के हो सकते हैं । चैतन्य केन्द्र : जागृति कब, कैसे ? ___ चैतन्य-केन्द्र किसी-किसी व्यक्ति के शीघ्र जागृत हो जाते हैं और कोई व्यक्ति बहुत प्रयत्न करके भी उन्हें जागृत नहीं कर पाता या बहुत दीर्घकालीन ध्यान के द्वारा कर पाता है । इसका हेतु है-आवरण की सघनता और विरलता । जो व्यक्ति अतीतकाल में ध्यान का अभ्यास कर चुका, उससे जिसका आवरण विरल हो चुका, वह थोड़े से ध्यानाभ्यास के द्वारा अपने चैतन्य-केन्द्र को जागृत कर लेता है । जो व्यक्ति वर्तमान में ही ध्यान का अभ्यास प्रारभ करता है, जिसका आवरण सघन है, वह हो सकता है कि
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