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चैतन्य- केन्द्र
चैतन्य- केन्द्र क्या हैं ?
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जो दृश्य है वह स्थूल शरीर है। इसके भीतर तैजस और कर्म- ये दो सूक्ष्म शरीर हैं । उनके भीतर आत्मा है । वह चैतन्यमय है । जैसे सूर्य और हमारे बीच में बादल आ जाते हैं वैसे ही आत्मा के चैतन्य और बाह्य जगत् के बीच में कर्म शरीर के बादल छाए हुए हैं। इसीलिए चैतन्य-सूर्य का पूर्ण प्रकाश बाह्य जगत् पर नहीं पड़ता । बादलों के होने पर भी सूर्य का प्रकाश पूरा ढंक नहीं जाता । वैसे ही कर्म-शरीर का आवरण होने पर भी चैतन्य पूरा आवृत्त नहीं होता । उसकी कुछ रश्मियां बाह्य जगत् को प्रकाशित करती रहती हैं । मनुष्य अपने प्रयत्न से कर्म शरीरगत ज्ञानावरण को जैसे-जैसे विलीन करता है वैसे-वैसे चैतन्य की रश्मियां अधिक प्रस्फुटित होने लगती हैं । कर्मशरीरगत ज्ञानावरण की क्षमता जितनी विलीन होती है उतने ही स्थूल शरीर प्रज्ञान की अभिव्यक्ति के केंद्र निर्मित हो जाते हैं। ये ही हमारे चैतन्य- केंद्र हैं ।
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समूचा शरीर ज्ञान का साधक
आत्मा के असंख्य प्रदेश (अविभागी अवयव) हैं। ज्ञानावरण उन सबको आवृत्त किए हुए है । इस आवरण का विलय भी सब प्रदेशों में होता है ।
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