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पद्धति और उपलब्धि - १४९ सूर्य का रंग पारे के समान श्वेत, चन्द्रमा का रंग चांदी के समान रूपहला, मंगल का तांबे के समान लाल, बुध का हरा, वृहस्पति का सोने के समान पीला, शुक्र का नील, शनि का आसमानी, राहु का काला, केतु का आसमानी रंग है | इनकी किरणें भिन्न-भिन्न प्रकार का प्रभाव डालती हैं । सूर्य की किरणें निर्मल होती हैं तो उनका भिन्न प्रकार का प्रभाव होता है। उसकी किरणों के साथ मंगल आदि दूसरे ग्रहों की किरणें मिल जाती हैं तब उनका प्रभाव दूसरे प्रकार का होता है।
रंगों के गुणों और प्रभावों का यह संकेत मात्र निदर्शन है । प्रत्येक रंग के अनेक पर्याय होते हैं और प्रत्येक पर्याय के गुण और प्रभाव भिन्न-भिन्न होते हैं । निर्मल भावना, ध्येय और उसके अनुरूप रंगों का चयन कर अनेक मानसिक समस्याओं को सुलझाया जा सकता है । लेश्या और ज्ञान
सामान्यतः हमारा ज्ञान पुस्तकीय होता है । हम पुस्तकें पढ़ते हैं और स्मृति के आधार पर पढ़ी हुई बातों को संजोकर रखते हैं । यह स्मृति-ज्ञान है | कुछ ज्ञान अपने चिंतन और मनन के द्वारा प्राप्त करते हैं। हमारे ज्ञान की इतनी छोटी-सी सीमा है । विशिष्ट ज्ञान और अतींद्रिय ज्ञान पढ़ने या चिंतन-मनन से नहीं होता, वह अध्यवसाय और लेश्या की विशुद्धि होने पर होता है । वह आकस्मिक जैसा होता है । पहले क्षण में नहीं होता और अगले क्षण में सहसा प्रकट हो जाता है । यद्यपि वह सहसा प्रकट होता, लेश्या की विशुद्धि होते-होते होता है, फिर भी उसकी पृष्ठभूमि में कोई अध्ययन, चिंतनमनन नहीं होता, इसलिए वह सहसा-जैसा लगता है । यह आत्मज्ञान है । पुस्तकीय ज्ञान बाहर से लिया हुआ या पुस्तकों के आधार पर चिंतन किया हुआ होता है । आत्मज्ञान भीतर से प्रकट होता है । उसकी उपलब्धि से ही सत्य का द्वार उद्घाटित होता है। इस संदर्भ में शुद्ध लेश्या, उसके सहयोगी पुद्गलों और निर्मल आभामंडल का मूल्यांकन किया जा सकता है।'
१. आभामंडल और लेश्याध्यान की विस्तृत जानकारी के लिए देखें-लेखक की नई कृति
'आभामंडल' ।
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