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१४८ - जैन योग विकृत होते हैं।
अशुभ भावना से बचने के लिए बाहरी निमित्तों का भी उपयोग किया जा सकता है । वे निमित्त हमारी लक्ष्यपूर्ति में सहयोगी बनते हैं । रंगों की कमी से उत्पन्न होने वाले रोग रंगों की समुचित पूर्ति होने पर मिट जाते हैं, यह उनका शारीरिक प्रभाव है | इसी प्रकार रंगों के परिवर्तन और मात्राभेद से मन प्रभावित होता है और चैतन्य केन्द्र भी जागृत होते हैं।
लाल रंग का ध्यान करने से शक्ति केन्द्र (मूलाधार) और दर्शन केंद्र (आज्ञाचक्र)-ये चैतन्य केंद्र जागृत होते हैं । पीले रंग का ध्यान करने से आनन्द-केन्द्र (अनाहत चक्र) जागृत होता है | श्वेत रंग का ध्यान करने से विशुद्धि-केंद्र (विशुद्धि-चक्र), तैजस-केन्द्र (मणिपूर-चक्र) और ज्ञान केन्द्र (सहस्रार-चक्र) जागृत होते हैं ।
___ श्वेत वर्ण ठंडा होता है । वह सूर्य से प्राप्त होने वाले जीवन-तत्त्व और बल को शरीर तक पहुंचाने में कोई बाधा उपस्थित नहीं करता | लाल रंग गर्मी बढ़ाने वाला है । जिसके शरीर में रक्त की गति मंद हो, उसके लिए यह लाभदायक है । किंतु जिसके ज्ञानतंतु दुर्बल हों, उसके लिए यह लाभकारक नहीं है | जो तुरंत थक जाता है और खिन्न रहता है उसके लिए यह रंग बहुत उपयोगी है । पीला रंग भी गर्मी बढ़ाने वाला होता है। उससे ज्ञानतंतु जागृत होते हैं-स्वस्थ रहते हैं । काला रंग सूर्य की रश्मियों को स्वयं आकर्षित कर लेता है । नीला रंग शीत प्रकृति का होता है । इससे जीवन-शक्ति प्राप्त होती है । इसमें विद्युत्-शक्ति है । यह पौष्टिक और शांति देने वाला है ।
रंगों के आधार पर मनुष्य के मानेभावों को पहचाना जा सकता है | जिसे आसमानी रंग पसन्द होता है वह बोलने में दक्ष, सहृदय और गंभीर होता है | वह मनोविकार, उत्साह आदि वृत्तियों पर नियंत्रण पा लेता है । जिसे पीला रंग पसंद हो वह विचारक और आदर्शवादी होता है | लाल रंग को पसंद करने वाला व्यक्ति साहसी, आशावान, सहिष्णु और व्यवहार-कुशल होता है । काले रंग को पसंद करने वाला दीनभावना से घिरा होता है । श्वेत रंग की पसंद करने वाला सात्त्विक वृत्ति और सात्त्विक भावना वाला होता है।
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