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पद्धति और उपलब्धि - १४५ आभामंडल में रक्त वर्ण की प्रधानता हो तो समझा जा सकता है कि यह व्यक्ति नम्र व्यवहार करने वाला, अचपल, ऋजु, कुतूहल न करने वाला, विनयी, जितेन्द्रिय, मानसिक समाधि वाला, तपस्वी, धर्म में दृढ़ आस्था रखने वाला, पापभीरु और मुक्ति की गवेषणा करने वाला है ।
आभामंडल में पीतवर्ण की प्रधानता हो तो समझा जा सकता है कि यह व्यक्ति अल्प क्रोध, मान, माया और लोभ वाला, प्रशांत चित्त वाला समाधिस्थ अल्पभाषी जितेन्द्रिय और आत्मसंयम करने वाला है । ____ आभामंडल में श्वेत वर्ण की प्रधानता हो तो समझा जा सकता है कि यह व्यक्ति प्रशांत चित्त वाला, जितेन्द्रिय, मन, वचन और काया का संयम करने वाला, शुद्ध आचरण से सम्पन्न ध्यानलीन और आत्म-संयमं करने वाला है।
यदि रक्त, पीत और श्वेत वर्ण अधिक प्रशस्त, मनोज्ञ होते हैं तो उक्त भावधारा और प्रवृत्ति के उकृष्ट होने का अनुमान किया जा सकता है । ध्यान और लेश्या का संबंध
ध्यान और लेश्या का संबंध इस प्रकार है१. आर्तध्यान- कृष्ण, नील और कापोत लेश्या की भावधारा,
कृष्ण, नील और कापोत वर्ण की प्रधानता वाला
अमनोज्ञ आभामंडल । २. रौद्रध्यान- कृष्ण, नील और कापोत लेश्या की प्रकृष्ट
भावधारा, कृष्ण नील और कापोत वर्ण की
प्रधानता वाला अमनोज्ञतम आभामंडल | ३. धर्मध्यान- तेजस्, पद्म और शुक्ल लेश्या की भावधारा,
तेजस्, पद्म और शुक्ल वर्ण की प्रधानता वाला
आभामंडलं । ४. शुक्लध्यान- शुक्ल और परमशुक्ल लेश्या की भावधारा,
शुक्ल वर्ण का मनोज्ञतम आभामंडल ।
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