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१४२ जैन योग
विचारधारा को प्रभावित करते हैं। उनके आधार पर मनुष्य की विचारधारा भी छह रंगी बन जाती है ।
जो पुद्गल - परमाणु मनुष्य की विचारधारा को प्रभावित करते हैं और जिना पुद्गल - परमाणुओं से आभामंडल निर्मित होते हैं उनमें वर्ण, गंध, रस और स्पर्श- ये चारों होते हैं । इनमें वर्ण मनुष्य के शरीर और मन को अधिक प्रभावित करता है । इसीलिए वर्ण के आधार पर लेश्याओं के नामकरण प्रस्तुत किए गए हैं ।
लेश्याओं के वर्ण, रस, गंध और स्पर्श एक चार्ट द्वारा समझाए गए हैं । (देखें पृ. १४३)
वर्ण अच्छे या बुरे दोनों प्रकार के होते हैं। काला वर्ण अच्छा भी होता है और बुरा भी होता है । प्रशस्त भी होता है, अप्रेशस्त भी होता है । मनोज्ञ भी होता है, अमनोज्ञ भी होता हैं। श्वेत वर्ण भी अच्छा-बुरा या प्रशस्तअप्रशस्त, या मनोज्ञ- अमनोज्ञ होता है । कृष्ण, नील और कापोत लेश्या के आभामंडल में होने वाले कृष्ण, नील और कापोत वर्ण अप्रशस्त होते हैं । तेजस्, पद्म और शुक्ल लेश्या के आभामंडल में होने वाले रक्त, पीत और श्वेत प्रशस्त होते हैं ।
लेश्या और ध्यान
मानसिक विचार की तरतमता के छह स्थान किए गए हैं। यह एक स्थूल वर्गीकरण है। सूक्ष्म तरतमता के आधार पर उसके अनेक स्थान होते हैं । यही नियम आभामंडल के लिए लागू होता है । मानसिक तरतमता के आधार पर वर्णों की छाया में भी बहुत तरतमता आ जाती है ।
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क्रोध, मान, माया और लोभ का परिणाम उत्कृष्ट होता है तब कृष्णलेश्या मध्यम होता है, तब नीललेश्या और मंद होता है, तब कापोतलेश्या की भावधारा होती है । क्रोध, मान, माया और लोभ के संयम का परिणाम मंद होता है तब तेजोलेश्या मध्यम होता है, तब पद्मलेश्या और उत्कृष्ट होता है, तब शुक्ललेश्या की भावधारा होती है ।
आर्त्तध्यान के समय कृष्ण, नील और कापोत- ये तीनों लेश्याएं होती हैं। रौद्रध्यान के समय भी ये तीनों होती हैं, किंतु उनका परिणमन तीव्रतम
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