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१४० - जैन योग
के छाया-चित्रों में आलोकमंडल पूरी तरह क्षीण हो चुके थे । इसका तात्पर्य है कि पत्ती की तब मौत हो चुकी थी।
किर्लियान दम्पत्ति ने एक रुग्ण पत्ती की फिल्म उस विशेष विधि से खींची । उसमें आलोकमंडल प्रारम्भ से ही कम था और वह शीघ्र ही समाप्त हो गया ।
किर्लियान दम्पति ने उस विशेष विधि द्वारा अत्यंत निकट से मानव शरीर के छायाचित्र खींचे । उन छायाचित्रों में गरदन, हृदय, उदर आदि अवयवों पर विभिन्न रंगों के सूक्ष्म धब्बे दिखाई दिए । वे उन अवयवों से विसर्जित होने वाली विद्युत-ऊर्जाओं के द्योतक थे ।
लेश्या वनस्पति के जीवों में भी होती है । पशु-पक्षी तथा मनुष्य में भी होती है । इसलिए आभामंडल भी प्राणिमात्र में होता है। तैजस शरीर है शक्ति केन्द्र
तैजस शरीर शक्ति-विकिरण का केन्द्र है । वह जितना विकसित होता है उतना ही उससे शक्ति-विकिरण होता है । वह शक्ति-विकिरण स्थूल शरीर के चारों ओर तीन-चार फुट तक फैल जाता है । यह अन्तरंग के अच्छे या बुरे विचारों का विकिरण करता है । यह सबका एक जैसा नहीं होता । लेश्या के आधार पर यह सशक्त या अशक्त, अच्छा या बुरा होता है । इससे दूसरे व्यक्ति प्रभावित होते हैं । अशक्त आभामंडल वाला सशक्त आभामंडल वाले से प्रभावित हो जाता है । 'भले मनुष्य के संसर्ग में रहो', 'बुरे मनुष्य के संसर्ग से बचो -इस उपदेश-वाक्य के पीछे यही रहस्य सन्निहित है । अच्छे आभामंडल वाले व्यक्ति के पास जाने पर बुरे विचार छूट जाते हैं और अच्छे विचार आने लग जाते हैं । किसी का आभामंडल बुरा, किंतु सशक्त हो तो उसके पास अच्छे विचार वाला, किंतु दुर्बल आभामंडल वाला जाता है तो उसके विचार भी बुरे बन जाते हैं । बहुत बार अकारण ही घृणा, दैन्य या विषाद के विचार इन्हीं प्रभावों से आ जाते हैं । उत्साह, प्रसन्नता या सात्त्विक विचारों की आकस्मिक उत्पत्ति में भी आभामंडल के प्रभाव कार्य करते हैं।
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