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पद्धति और उपलब्धि १३९
विकास जरूरी है | प्रेक्षाध्यान के द्वारा वह किया जा सकता है। उसका विकास होने पर आभामंडल को देखा जा सकता है और आभामंडल के द्वारा विचारों को देखा जा सकता है ।
जीवित और मृत की पहचान : आभामंडल
प्रत्येक प्राणी के दो प्रकार के शरीर होते हैं - स्थूल और सूक्ष्म | स्थूल शरीर रक्त, मांस, अस्थि आदि धातुओं से निर्मित होता है। सूक्ष्म शरीर सूक्ष्म परमाणुओं से निर्मित होता है। उसके इलेक्ट्रॉन स्थूल शरीर (ठोस शरीर ) के इलेक्ट्रॉनों की अपेक्षा अधिक तीव्र गति से चलायमान होते हैं। इसीलिए सूक्ष्म शरीर और उसकी गतिविधि इन्द्रियगम्य नहीं होती । सूक्ष्म शरीर के दो प्रकार हैं - तैजस शरीर और कर्म शरीर । प्राणी की प्राण-शक्ति का मूल स्रोत तैजस शरीर है । इससे प्राण शक्ति उत्पन्न होती है । वह स्थूल शरीर, श्वास, इन्द्रिय, वचन और मन को संचालित करती है। पौदगलिक लेश्या या आभामंडल भी तैजस शरीर से निष्पन्न होता है । प्राणी के जन्म लेने के साथ वह बनता है और जीवन के अंत तक वह रहता है । इसके आधार पर जीवित या मृत का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है । हृदयगति या श्वास के रुक जाने पर या नाड़ी के स्पंदन पकड़ में न आने पर मनुष्य को मृत घोषित किया जाता है, यह एक स्थूल ज्ञान है । जीवित या मृत के पहचान की सूक्ष्म पद्धति है आभामंडल का ज्ञान । जब तक आभामंडल क्षीण नहीं होता तब तक हृदयगति या श्वास के रुक जाने पर भी मनुष्य की वास्तविक मृत्यु नहीं होती । उसकी वास्तविक मृत्यु आभामंडल के क्षीण हो जाने पर ही होती है ।
सोवियत रूस के इलेक्ट्रॉनिक विशेषज्ञ सेमयोन किर्लियान तथा उनकी वैज्ञानिक पत्नी वेलेन्टिना ने फोटोग्राफी की एक विशेष विधि का आविष्कार किया । उस विधि द्वारा प्राणियों और पौधों के आसपास होने वाली सूक्ष्म विद्युतीय गतिविधियों का छायांकन किया जा सकता है । जब एक पौधे से तत्काल तोड़ी गयी पत्ती की सूक्ष्म गतिविधियों की फिल्म खींची गयी तो आश्चर्यकारी दृश्य सामने आए। पहले चित्र में पत्ती के चारों ओर स्फुलिंगों, झिलमिलाहटों और स्पंदी ज्येतियों के मंडल दिखायी दिए । दस घंटे बाद लिए गए छाया-चित्रों में ये आलोकमंडल क्षीण होते दिखाई दिए । अगले दस घंटों
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