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पेद्धति और उपलब्धि - १३५ यह उपदेश नहीं है । यह संयम का प्रयोग है । सर्दी लगती है तब मन की मांग होती है कि गर्म कपड़ों का उपयोग किया जाए या सिगड़ी आदि की शरण ली जाए । गर्मी लगती है तब मन ठंडे द्रव्यों की मांग करता है । संयम का प्रयोग करने वाला उस मांग की उपेक्षा करता है-मन की मांग को जान लेता है, देख लेता है पर उसे पूरा नहीं करता । ऐसा करते-करते मन मांग करना छोड़ देता है, फिर जो घटना घटती है वह सहजभाव से सह ली जाती
प्रेक्षा संयम है, उपेक्षा संयम है । आप पूरी एकाग्रता के साथ लक्ष्य को देखें, अपने आप संयम हो जाएगा । फिर मन, वचन और शरीर की मांग आपको विचलित नहीं करेगी । उसके साथ उपेक्षा, मन, वचन और शरीर का संयम अपने आप सध जाता है।
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