________________
पद्धति और उपलब्धि
को निवृत्त करने का अर्थ है - शरीर की सारी क्रियाओं से मुक्त कर हल्का बना देना मानो कि शरीर है ही नहीं । यह अनुभव होने लगे कि ध्यान करतेकरते शरीर खो गया है । एक साधक ध्यान कर रहा था । ध्यान करते-करते वह चिल्लाने लगा- 'मेरा शरीर खो गया है। आओ, जल्दी आओ, ढूंढो । ढूंढकर लाओ ।' उसे यह भान ही नहीं रहा कि मेरा शरीर है या नहीं । एक बिन्दु है निवृत्ति का और एक बिन्दु है प्रवृत्ति का । योग दोनों विषयों में है । अध्यात्म की ज्योति : कर्मकांड की राख
साधना के अनेक प्रकार हैं। सबसे बड़ी साधना है - अध्यात्म की, भीतर में जाने की। बाहरी यात्रा से व्यक्ति को हटाकर भीतर की यात्रा करा सके, यह साधना सबसे बड़ी साधना है । चेतना का संपर्क जितना इसके माध्यम से होता है, उतना किसी के माध्यम से नहीं होता । हम जिस सत्य को इस माध्यम से जान सकते हैं, अन्य किसी माध्यम से नहीं । हम दूसरों के साथ एकात्मकता या मैत्री इस माध्यम से सहज ही स्थापित कर सकते हैं । दूसरे माध्यम से इतने कार्यकारी नहीं होते ।
यदि हम भीतर की यात्रा नहीं करते हैं तो अध्यात्म के स्थान पर कर्मकांड विकसित होते हैं । इसका अर्थ होता है कि अध्यात्म की ज्योति कर्मकांड की राख से ढंक जाती है - प्रकाश नीचे दब जाता है, कालिमा ऊपर आ जाती है । होना यह चाहिए की प्रकाश प्रकट रहे, ज्योति ऊपर रहे। इस ज्योति को अनावृत करने के लिए, आग राख के ढेर के नीचे न दबे, इसके लिए भीतर का प्रवेश जरूरी है, अध्यात्म की यात्रा जरूरी है ।
Jain Education International
१२१
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org