________________
पद्धति और उपलब्धि - ११७ नहीं है । बुद्धि को यह पसंद नहीं है | बुद्धि इसका समर्थन भी नहीं करती, किंतु जब अनुभव इसकी सत्यता को प्रमाणित कर देता है, तब बुद्धि भी सक्रिय हो जाती है | वहां बुद्धि के द्वारा प्रस्तुत तर्क भी व्यर्थ हो जाता है, क्योंकि अनुभव सबसे बड़ा प्रमाण है । तर्कशास्त्र कहता है-'प्रत्यक्षं सर्वज्येष्ठं प्रमाणम्'–प्रत्यक्ष सर्वज्येष्ठ प्रमाण है । प्रत्यक्ष के द्वारा जो बात जान ली जाती है, फिर उसके लिए किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं है । अनुभव प्रत्यक्ष : तर्क परोक्ष
अनुभव प्रत्यक्ष है । जब हमने अनुभव के द्वारा जान लिया तब खंडन करने के लिए हमारे पास कोई तर्क सक्षम नहीं होता । साधना का समूचा मार्ग, भीतर में प्रवेश का मार्ग प्रत्यक्ष का मार्ग है, अनुभव का मार्ग है । हम भीतर में चेतना के अन्तस्तल में प्रवेश करके उसकी गहराइयों में जाकर कुछ साक्षात् करते हैं, अनुभव करते हैं तो अनुभव के बाद कोई भी तर्क उसे खंडित नहीं कर सकता । जिस बात को मैं प्रत्यक्ष जान रहा हूं उसके लिए मुझे कोई तर्क दे तो मैं कभी स्वीकार नहीं करूंगा और मैं यह कहूंगा कि तुम तर्क के द्वारा यह समझाने का प्रयत्न कर रहे हो किन्तु में इसे प्रत्यक्ष कर चुका हूं। प्रत्यक्ष के सामने तुम्हारा तर्क व्यर्थ है, किसी काम का नहीं है । एक आदमी मिश्री खा रहा है । वह मीठी है, इसका वह अनुभव कर रहा है | अब कोई दूसरा आदमी तर्क से सिद्ध करना चाहे कि नहीं, यह मीठी नहीं है, कड़वी है | चाहे कितना ही बड़ा तार्किक हो किंतु जो प्रत्यक्षतः अनुभव कर रहा है तो क्या उसका स्वाद, उसका अनुभव तर्क के द्वारा बाधित हो सकता है ? नहीं हो सकता । जिसने कभी मिश्री का स्वाद न चखा हो और उसे कोई समझाना चाहे कि यह नमकीन होती है या कड़वी होती है, तब तर्क की प्रबलता के आधार पर वह मान भी सकता है क्योंकि उसने कभी उसका अनुभव नहीं किया है । किंतु प्रत्यक्षतः अनुभव करने वाला इसे कभी नहीं मानेगा चाहे दुनिया का बड़े से बड़ा तार्किक भी क्यों न हो । साधना का समूचा मार्ग अनुभव का मार्ग है, यह अनुभव की दिशा है । इस दिशा में जितने आयाम आए हैं वे सारे-के-सारे अनुभव के ही आयाम हैं, दूसरा आयाम नहीं है । जब हम चेतना की समाधि में जाते हैं तो हमारे पास अनुभव के सिवाय कुछ बचता
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org