SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 128
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११० जैन योग अपने चरम शिखर पर पहुंच जाता है। समत्व का चरम शिखर है - वीतरागता । समत्व का प्रारंभ होता है संतुलन से और चरम परिणति होती है वीतराग में । एक है उपत्यका और एक है अधित्यका । उपत्यका तलहटी है और अधित्यका पर्वत का ऊपरी भाग है । जैसे हिमालय की तलहटी है तो उसका शिखर भी है । तलहटी भी हिमालय है तो शिखर भी हिमालय है । तलहटी हिमालय नहीं है, केवल शिखर ही हिमालय है - ऐसा नहीं कहा जा सकता । समत्व की तलहटी भी समत्व है और समत्व का शिखर भी समत्व है । समत्व की तलहटी है संतुलन और समत्व का शिखर है वीतरागता । दोनों समत्व हैं । महावीर ने जो कहा कि समत्वदर्शी कोई पाप नहीं करता, इसका आशय है कि जो साधक समत्व की चोटी वीतरागता पर पहुंच चुका है, वह कोई पाप नहीं करता। जो उस शिखर पर चढ़ने की तैयारी कर रहा है, जो अभी तलहटी पर ही खड़ा है वह पाप नहीं करता, इसका इतना सा तात्पर्य हो सकता है कि उस साधक के मन में पाप न करने का संकल्प जाग जाता है। उस संकल्प के साथ उसकी यात्रा प्रारंभ होती है । वह आरोहण प्रारंभ करता है । आरोहण करते-करते एक दिन वह समस्त बाधाओं को चीर कर समत्व के शिखर पर पहुंच जाता है । वीतरागी बन जाता है । वहां पहुंचकर फिर वह कभी पाप नहीं करता । सारी पापमय प्रवृत्तियां छूट जाती हैं । समत्व की प्रज्ञा जाग जाने पर हमें एक बोध मिलता है कि हमने ध्यान और धारणा के द्वारा समत्व की प्रज्ञा को जगा लिया है । अनुप्रेक्षा, भावना और ध्यान से अंतर्दृष्टि के साथ-साथ समत्व की प्राप्ति भी कर ली, किंतु शिखर अभी भी दूर है । हम शिखर के अभिमुख अवश्य हुए हैं, पर शिखर पर पहुंचे नहीं हैं। यात्रा चालू है | आरोहण चालू है । मार्ग लंबा है । हमें निरंतर चलना है । इसलिए ध्यान की धारा निरंतर चलती रहे, यह अभ्यास सतत चालू रहे और तब तक चालू रहे जब तक कि हम समत्व के शिखर पर न पहुंच जाएं और वहां पहुंचकर हम विजय की ध्वजा न फहरा दें । I Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002746
Book TitleJain Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy