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________________ साधना की भूमिकाएं ९९ को स्थिर बनाकर, वस्तु के एक पर्याय या धर्म पर स्थिर होकर गहरे में जाकर उसका साक्षात् करना, उसका प्रत्यक्ष अनुभव करना । इस प्रकार हम छिपे हुए सत्य को साक्षात् कर लेंगे, समझ लेंगे । धर्मध्यान: परिणाम और कसौटियां धर्मध्यान सत्य के खोज की प्रक्रिया है । अंतर्दृष्टि का विकास होने पर धर्मध्यान का क्रम चालू हो जाता है । मूढ़ व्यक्ति की एकाग्रता इस विषय पर होती है कि इष्ट वस्तु कैसे प्राप्त हो और अनिष्ट वस्तु कैसे छूटे ? प्रिय वस्तु की प्राप्ति कैसे हो और अप्रिय वस्तु कैसे छूटे ? मनोज्ञ पदार्थ का संयोग कैसे हो और अमनोज्ञ का वियोग कैसे हो ? अंतर्दृष्टि के जागने पर व्यक्ति की वृत्ति, व्यक्ति का चित्त सत्य की खोज में एकाग्र हो जाता है । उसके लिए सत्य की खोज मुख्य बन जाती है और वह निरंतर यह सोचता रहता है तथा चित्त को इस पर स्थिर करता है कि सत्य क्या है ? यथार्थ क्या है ? इस पर स्थिर होने पर वह अनेक सचाइयों का साक्षात् कर लेता है । 1 धर्मध्यान वस्तु-सत्यों को खोजने की महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है । यह कोई धर्म-अधर्म का ध्यान नहीं है, किंतु वस्तु-धर्मों का ध्यान है, वस्तु के पर्यायों का ध्यान है । इससे वस्तु के रहस्यों का उद्घाटन होता है । आज वैज्ञानिक जगत् में जो बहुत सारी खोजें हो रही हैं, उन खोजों के पीछे धर्मध्यान ही काम कर रहा है । खोजना कोई बुरी बात नहीं है । खोज चाहे एक वैज्ञानिक करे या एक अध्यात्मवेत्ता करे, साधक करे, खोज खोज है। यह आर्त्तध्यान या रौद्रध्यान नहीं है । शर्त इतनी ही है कि उस खोज के साथ राग-द्वेष जुड़ा हुआ न हो । दस सेकंड में सारे संसार को नष्ट करने वाले शस्त्र की खोज धर्मध्यान नहीं है, क्योंकि उसके पीछे राग-द्वेष की श्रृंखला है। किंतु जहां सत्य की खोज है वहां केवल तत्त्व को खोजना है कि परमाणु क्या है ? इलेक्ट्रॉन क्या है ? प्रोटॉन क्या है ? न्यूट्रॉन क्या है ? न्युक्लियस क्या है ? - यह सारी तत्त्व की खोज है । यह धर्मध्यान है । इस प्रकार मानसिक समस्याओं को खोजना, संकल्प-शक्ति के प्रभाव को खोजना - ये सारी खोजें वैज्ञानिक कर रहे हैं । जो खोजें अध्यात्म के साधक को करनी चाहिए थीं वे सारी खोजें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002746
Book TitleJain Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size10 MB
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