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९८ - जैन योग के द्वारा ही मिटाया जा सकता है | उपायों की खोज प्रारंभ हुई। सभी अपायों के उपाय खोजे जाने लगे । रोग का निदान करने मात्र से ही कार्य निष्पन्न नहीं होता । रोग को मिटाने का उपाय भी करना पड़ता है । जितने रोग हैं, उतने ही उपाय है। विरागविचय
विपाक को मिटाने के लिए विरागविचय की खोज हुई । विरागविचय अर्थात् पदार्थों के प्रति राग कैसे कम हो सकता है ? द्वेष कैसे कम हो सकता है ? उस विराग का विचय करो, विराग को खोजो । भवविचय
संस्थानविचय से पर्यायों को जाना, सब कुछ किया । उसका भी कोई प्रतिकार होना चाहिए ? इस चिंतन में भवविचय की खोज हुई । वह इसके साथ जुड़ गया । संसार में कितना परिवर्तन होता है। आदमी मरता है, फिर जन्म लेता है । वह कभी किसी का पुत्र होता है, फिर पिता बन जाता है। वह कभी पति होता है तो कभी किसी की पत्नी बन जाता है | भाई का शत्रु बन जाता है और शत्रु का भाई बन जाता है | नाना पर्यायों की खोज की । भवविचय का विकास हो गया । हजारों विचय
आज्ञाविचय के साथ मूल तत्त्वों की खोज प्रारंभ हुई। आज के वैज्ञानिकों के सामने भी यह प्रश्न है कि मूल कण क्या है ? वे अभी भी मूल कारण की खोज में लगे हुए हैं । दार्शनिकों के सामने भी यह प्रश्न रहा है कि संसार का मूल क्या है ? किसी ने कहा कि संसार का मूल चेतन है । किसी ने कहा कि संसार का मूल अचेतन द्रव्य है । अचेतन ही सारी सृष्टि का मूल है । किसी ने कहा कि चेतन से ही सारी सृष्टि का विकास हुआ है। इनके आधार पर दो विचय और जुड़ गए- जीव विचय और अजीव विचय । जीव का विचय करो, अजीव का विचय करो । चार विचय के दस विचय बन गए | इस प्रकार हजारों विचय हो सकते हैं। यह तो हम पर निर्भर है कि हम विचयध्यान को कितने प्रकार से विकसित कर सकते हैं । मूल बात यह है कि चित्त
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