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साधना की भूमिकाएं । ९७ फल पर भी ध्यान दें। यदि यह फल है, विपाक है तो इसका बीज यह होना चाहिए । बीज पर ध्यान देने का अर्थ है, विपाक पर ध्यान देना । विपाक बदला जा सकता है। हम कर्म की अवस्थाओं पर ध्यान दें। उदीरणा, संक्रमण, अपवर्तन, उद्वर्तन-इन सभी अवस्थाओं पर ध्यान करें। अपने पुरुषार्थ को देखें कि किस पुरुषार्थ के द्वारा इन विपाकों को बदला जा सकता है । यह विपाक-विचय ध्यान है। संस्थानविचय ध्यान
संस्थानविचय ध्यान के सत्य को खोजने का उपाय है । हम आकारों, रूपों और वस्तु की प्रकृतियों को देखें। वस्तुओं की आकृति और प्रकृति की खोज करते जाएं । अपने शरीर के भीतर की आकृति और प्रकृति को खोजें । शरीर की प्रेक्षा करें, पदार्थ की प्रेक्षा करें, किसी बिंदु की प्रेक्षा करें । हमारा ध्यान पदार्थ के संस्थान पर केन्द्रित हो जाएगा और तब उसके विभिन्न पर्याय स्पष्ट होते जाएंगे । यह संस्थानविचय ध्यान है । उपायविचय
महावीर ने इन चार विचयों का प्रतिपादन किया । हम शब्दों के आलंबन से चलें और इन चार विचयों पर ध्यान करें। इनमें बहुत कुछ समा जाता है। ये तो चार उदाहरण मात्र हैं । ऐसे अनेक उदाहरण दिए गए हैं । आचार्यों ने इस ओर विकास किया और इनकी संख्या बढ़ा दी । जब हेतुवाद प्रबल हुआ, तर्क का विकास हुआ, तब यह माना जाने लगा कि अतीन्द्रिय पदार्थ हम देख नहीं पा रहे हैं और इस स्थिति में हम क्यों माने कि किसी ने अतीन्द्रिय सत्य का साक्षात्कार किया है ? हम तो उसी सत्य को स्वीकार करेंगे जो बुद्धिगम्य है । जो बुद्धिगम्य नहीं है हम उसे स्वीकार नहीं करेंगे । अतीन्द्रिय सत्य को हम स्वीकृति नहीं देंगे । हम हेतुगम्य सत्य को मान सकते हैं, आज्ञागम्य या अहेतुगम्य सत्य को नहीं मान सकते । इस प्रकार आज्ञाविचय के साथसाथ हेतुविचय का भी स्थान हो गया । तब कहा गया कि हेतुओं के द्वारा भी सत्य की खोज हो सकती है । यह लंगड़ाती-सी प्रक्रिया है, फिर भी इसका प्रचलन हुआ | कोरा अपाय खोजने से क्या होगा? इसके साथ एक विचय और जुड़ गया । वह था उपायविचय, उपायों की खोज । अपायों को उपाय
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