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जैन योग
मिलना बंद हो जाता है तब तैजस शरीर भी काम करना बंद कर देता है और तब अजीर्ण का अनुभव होने लगता है। रात्रि में पाचन-यंत्र के स्नायु सिकुड़ जाते हैं, पाचन की क्षमता कम हो जाती है । रात्रि भोजन के निषेध का यह बहुत बड़ा वैज्ञानिक तथ्य है । सूर्य के प्रकाश में पाचन-तंत्र की सक्रियता बढ़ती है । इसीलिए कहा गया है कि सूर्य को उदित हुए दो घंटे हो जाएं तब खाया हुआ भोजन ठीक पचता है । इससे पूर्व कुछ भी नहीं खाना चाहिए। सूर्य के रहते-रहते भोजन करने वाला पाचन के दोषों से मुक्त रह सकता है ।
सूर्य की शक्ति के सहारे तैजस शरीर भी सक्रिय रहता है । दिन में जो सक्रियता रहती है वह रात में नहीं रहती । हम सोचते हैं कि दिन में काम करने में थकान आ जाती है, इसलिए रात्रि में सक्रियता नहीं रहती । थकान भी रात में महसूस होती है । जितनी सुस्ती है वह अंधकार में ज्यादा उभरती है । सूर्य की शक्ति प्राप्त होते ही हमारे तैजस शरीर को शक्ति मिलती है । सारी क्षमताएं जाग जाती हैं । तैजस शरीर की क्षमता का विकास होने पर तेजोलेश्या का विकास होता है । सुख का अनुभव भी तेजोलेश्या से होता है । जब कृष्णलेश्या के स्पंदन होते हैं, दुःख का अनुभव होता है । जब तेजोलेश्या के स्पंदन जागते हैं, तब सुख का अनुभव होता है ।
तेजोलेश्या का परिणाम
अंतर्दृष्टि के जागने पर एक बड़ा परिवर्तन होता है और वह यह कि मूढ़ अवस्था में व्यक्ति केवल बाहरी निमित्तों से होने वाले सुखद स्पंदनों का अनुभव करता है । उसे यह पता भी नहीं चलता कि भीतर भी सुखद स्पंदन हैं । तेजोलेश्या जैसे ही विकसित होती है, भीतर के सुखद स्पंदन जाग जाते हैं । उस समय वह सोचता है--अरे, यह क्या हुआ ? सुख का अनुभव कैसे हुआ ? बाहर का कोई निमित्त नहीं है, पदार्थ नहीं है, इतना सुख कहां से आया ? यह अंतर् से प्रस्फुटित होने वाला सुख है | यह पदार्थ-निरपेक्ष सुख है । यह तैजस शरीर से प्रस्फुटित होने वाला सुख है । यह सुख इतना आनन्ददायी और मधुर होता है कि उसको छोड़ने का मन ही नहीं करता ।
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