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________________ प्रक्रियाएं प्राप्त नहीं हैं । उनका विलोप कैसे हुआ ? यह अभी प्रश्नचिह्न ही बना हुआ है। भद्रबाहु स्वामी ने द्वादशवर्षीय 'महाप्राणध्यान' की साधना की थी । अन्य आचार्यों के विषय में भी 'सर्वसंवरयोगध्यान' की साधना का उल्लेख मिलता है । आगमिक साधना का स्वरूप हमें उपलब्ध है किंतु उसका विधि-तंत्र उपलब्ध नहीं है । आचार्य कुन्दकुन्द (विक्रम की प्रथम शताब्दी) ने समयसार, प्रवचनसार आदि ग्रंथों की रचना कर जैन-परम्परा में साधना का नया क्षेत्र खोला | किंतु मुक्तिमार्ग का समग्रदृष्टि से एक ग्रंथ में प्रतिपादन करने का श्रेय उमास्वाति (वि. २-३) को ही है। उनका मोक्षमार्ग (तत्त्वार्थ सूत्र) आगम साहित्य और उत्तरवर्ती साहित्य के मध्य की कड़ी है। उसमें मुक्तिमार्ग के अंगों का सविस्तार प्रतिपादन है। साधना की प्रक्रियाओं का विस्तार हमें नियुक्ति साहित्य में मिलता है। उसका सांगोपांग वर्णन आवश्यकनियुक्ति के कायोत्सर्ग-अध्ययन में मिलता है । इसके रचनाकार हैं द्वितीय भद्रवाहु स्वामी और इसका रचनाकाल विक्रम की चौथी-पांचवीं शताब्दी है । मानसिक एकाग्रता की दूसरी भूमिका ध्यान है । उसका विशद विवेचन जिनभद्रगणी (छठी शताब्दी) के 'ध्यान शतक' में मिलता है । ये दोनों रचनाएं योगदर्शन तथा हठयोग के अन्य ग्रंथों से प्रभावित नहीं हैं। इनमें जैन-परम्परा का स्वतंत्र चिंतन परिलक्षित होता है । पूज्यपाद देवनंदि (चौथी-पांचवीं शताब्दी) का 'समाधितंत्र आध्यात्मिक अनुभूतियों का अजस्र स्रोत है । 'इष्टोपदेश' में भी पूज्यवाद ने गहरी डुबकियां लगायी हैं । उसे पढ़ने वाला कोई भी व्यक्ति अध्यात्म से तदात्म हुए बिना नहीं रह सकता । पूज्यपाद योगानुभूति की परम्परा के आदिस्रोत हैं । बृहत्कल्पभाष्य, व्यवहारभाष्य, मूलाराधना (भगवती आराधना) आदि ग्रंथों में प्रसंगवश कायोत्सर्ग ध्यान, आसन आदि की चर्चा मिलती है । तत्त्वार्थसूत्र की वृत्तियों-श्लोकवार्तिक, भाष्यनुसारिणी आदि में भी विशद चर्चा हुई है। विक्रम की आठवीं शताब्दी से जैन योग में एक नये अध्याय का सूत्रपात होता है । उसके पुरस्कर्ता हैं हरिभद्र सूरी । उन्होंने योग की पद्धतियों और परिभाषाओं का जैन-पद्धतियों से समन्वय स्थापित कर जैन योग को नई दिशा प्रदान की। उनके मुख्य ग्रंथ हैं-योगबिंदु, योगदृष्टिसमुच्चय, योगशतक और योगविंशिका । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002746
Book TitleJain Yog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size10 MB
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