________________
रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविधि मंतव्यों की समीक्षा
रहने की चर्चा की गई है, अर्थात् वस्तु को त्र्यधर्मात्मक मानना ही उचित है, रत्नप्रभ द्वारा ऐसी चर्चा की गई है।
बौद्धों के पूर्वपक्ष में रत्नाकरावतारिका के पंचम परिच्छेद के आठवें सूत्र की टीका में रत्नप्रभ ने कहा है कि बौद्धों को वस्तु स्वद्रव्य की अपेक्षा से अस्ति-रूप है, यह बात तो स्वीकार्य है, किन्तु परद्रव्य की अपेक्षा से वस्तु नास्तिरूप है, यह बात बौद्धों को स्वीकार्य नहीं है, बौद्धों की इस मान्यता पर, रत्नप्रभ द्वारा यह चर्चा उठाई गई है कि यदि वस्तु में परद्रव्य का असत्व स्वीकार नहीं किया जाएगा, तो फिर वस्तु को सर्वात्मक और सर्वमय होने का प्रसंग उपस्थित होगा, किन्तु बौद्धों द्वारा जो स्वसत्व है, वही पर की अपेक्षा असत्व है, क्योंकि स्वसत्व से पृथक् पर असत्व जैसी किसी वस्तु को नहीं माना जा सकता है । अन्त में, रत्नप्रभ द्वारा बौद्धों के द्वारा यह बात स्वीकार किए जाने का उल्लेख है कि वस्तु एक-दूसरे की अपेक्षा से ही सत्-असत्प होती है, एकान्त - सत्व या एकान्त असत्वरूप नहीं है । जो स्वसत्व है, वहीं पर असत्व है- ऐसा नहीं है, अपितु स्व भी सत्व-असत्वरूप है और पर भी सत्व असत्वरूप है । अन्त में, रत्नप्रभ द्वारा अनेकान्त - दृष्टि को एकान्तभेद और एकान्त - अभेद का तिरस्कार किए जाकर सापेक्ष रूप से भेद और अभेद- दोनों को स्वीकार किए जाने की चर्चा की गई है।
।
79
बौद्धमत की समीक्षा के उपरान्त नैयायिक द्वारा 'अभाव' नामक एक स्वतंत्र पदार्थ को माने जाने की चर्चा की गई है। अभाव के चार भेद किए गए, जिसमें परस्पराभाव अर्थात् अन्योन्याभाव नामक जो अभाव है, उसके द्वारा ही पदार्थ प्रतिनियत स्वरूप वाला होता है, ऐसा सिद्ध हो जाने की चर्चा की गई है। इसकी समीक्षा में रत्नप्रभ द्वारा घटपटादि से अत्यन्त भिन्न माने हुए ऐसे अलग पदार्थस्वरूप ऐसे अभाव के लिए जो घटपटादि का भेद होता है, वे घटपटादि पदार्थ स्वयं भिन्न हैं और भेद कराते हैं ? या स्वयं अभिन्न हैं और भेद कराते हैं ? इन दोनों पक्षों में से नैयायिक कौनसे पक्ष को मानते हैं, इसकी चर्चा की गई है।
यहाँ रत्नप्रभसूरि ने बौद्धों के मंतव्य की समीक्षा नैयायिकों का पूर्वपक्ष प्रस्तुत करके की है। दो पदार्थों में भिन्नता का आधार एक पदार्थ में दूसरे पदार्थ के कुछ गुण-धर्म का अभाव माने बिना नहीं होता । भेद के लिए अभाव की स्वीकृति आवश्यक है, जैसे- मनुष्य को मनुष्य होने के लिए उसमें पशुत्व का अभाव मानना होगा। पशुत्व का अभाव माने बिना
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org