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रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविधि मंतव्यों की समीक्षा
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विस्तृत चर्चा करने के उपरान्त रत्नप्रभ द्वारा बौद्धो के समक्ष यह आपत्ति उठाई गई है कि जिस प्रकार आप बौद्धों ने हम जैनों पर नाश के संबंध में चार प्रश्न उपस्थित किए थे, उसी प्रकार हम जैनों द्वारा भी उत्पाद को सहेतुक मानने के संबंध में वही उपर्युक्त चार प्रश्न पूछे जा सकते हैं किउत्पाद और घट में आप बौद्ध कौनसा संबंध मानेंगे ?
___ 1. क्या कार्य-कारण-संबंध मानेंगे ? 2. संयोग-सम्बन्ध मानेंगे ? 3. विशेष्य-विशेषण-संबंध मानेंगे ? अथवा 4. अविष्वकभाव-संबंध मानेंगे ? अन्त में, रत्नप्रभ द्वारा क्षणिकवाद का उपसंहार करते हुए दोनों पक्षों के समक्ष पदार्थ के वास्तविक स्वरूप का वर्णन किए जाने की चर्चा में लिखा गया है कि पदार्थ में उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य अपेक्षा–भेद से किस प्रकार से रहे हुए हैं, यह स्पष्ट हो जाने की चर्चा की गई है।
उपरोक्त चर्चा के सार को निम्न प्रकार से स्पष्ट किए जाने की चर्चा में रत्नप्रभ द्वारा पदार्थ की उत्पत्ति और नाश को निमित्तभूत-कारण-सामग्री भिन्न-भिन्न माने जाने की चर्चा की गई है। रत्नप्रभ द्वारा द्रव्य और पर्याय में एकान्त–भिन्नता या एकान्त-अभिन्नता न मानते हुए कथंचित्-भिन्नता एवं कथंचित्-अभिन्नता, इस प्रकार, तादात्म्य माने जाने की चर्चा की गई है। पुनः, बौद्धों द्वारा किए गए तर्कों की समीक्षा करते हुए रत्नप्रभ द्वारा मिट्टी की पिंडरूप पर्याय में, घट-पर्याय में एवं घट के नाशरूप कपाल के पर्याय में, अर्थात् तीनों ही पर्याय मृत्तिका-द्रव्य की ध्रौव्यता निश्चित रूप से रह जाने की चर्चा की गई है, अर्थात् घट और घट के नाश में भी द्रव्य की तादात्म्यता के कारण कथंचित्-भेद ही माने जाने की चर्चा, किन्तु एकान्तभेद नहीं माने जाने की चर्चा की गई है। पुनः, रत्नप्रभ द्वारा घट के अस्तित्व और घट के विनाश में द्रव्य की अपेक्षा से कथंचित्-अभेद भी है और पर्याय की अपेक्षा से कथंचित्-भेद भी है, इस प्रकार, महत्वपूर्ण मान्यता की चर्चा की गई है और इसमें किसी भी प्रकार का विरोध बौद्धों द्वारा उठाया जाना उचित नहीं है, ऐसी चर्चा भी रत्नप्रभ द्वारा की गई है। अन्त में, उपसंहार करते हुए रत्नप्रभ द्वारा संसार के समस्त पदार्थों को पूर्व और उत्तरकाल में क्रमवर्ती-पर्यायों से युक्त रहने के कारण उसमें उत्पाद-व्यय और ध्रौव्यत्व-तीनों ही धर्म को माने जाने की चर्चा की गई है, अतः, पदार्थ को सामान्य-रूप और विशेष रूप- दोनों ही माने जाने की चर्चा की गई है।
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