SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 75
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविधि मंतव्यों की समीक्षा बताकर साध्य की सिद्धि करने में निर्दोष माने जाने की चर्चा की है। पुनः, बौद्धों द्वारा शास्त्रों के उल्लेख की चर्चा करते हुए जैनों से यह प्रश्न पूछे जाने की चर्चा है कि वे पदार्थ के विनश्वर स्वभाव को मानेंगे ? या अविनश्वर स्वभाव को मानेंगे ? क्योंकि बौद्धों द्वारा पदार्थ का उत्पाद सहेतुक हैं तथा उनके नाश को निर्हेतुक माने जाने की चर्चा है। इसके पश्चात्, बौद्धों द्वारा यह प्रश्न भी पूछे जाने की चर्चा है कि- नाश के कारणभूत-सामग्री आदि घटादि पदार्थ से पृथक-भूत (भिन्न) है ? या अपृथक्-भूत है ? बौद्ध के मत को खण्डित करते हुए रत्नप्रभ चर्चा में लिखते हैं कि घट की उत्पत्ति के लिए तो कारण-सामग्री अपेक्षित है, किन्तु विनाश के लिए नहीं, जबकि विनाश वस्तु का सहज स्वभाव है। पुनः, बौद्ध-दार्शनिक रत्नप्रभ के समक्ष यह चर्चा करते हुए प्रश्न उठाते हैं कि यदि आप जैन नाश के कारणभूत मुद्गर आदि सामग्री को घटादि पदार्थ से पृथक्भूत (भिन्न) मानते हो, तो यह बताइए कि वह सामग्री घटादि पदार्थ के समकालीन हैं ? या उत्तरकालीन है ? अन्ततः तो बौद्धों द्वारा जैनों के पृथक्भूत को उचित नहीं माने जाने की चर्चा की है। बौद्धों द्वारा पुनः जैनों पर यह आक्षेप लगाए जाने की चर्चा है कि जब घट और घटाभाव में परस्पर-विरोध है, तो "विरोधी' का तात्पर्य क्या है ? 1. क्या घटाभाव घट का नाशक है- ऐसा अर्थ है, अथवा 2. यह घटाभाव घट का नाश है ? क्या ऐसा अर्थ है ? आप विरोधी होने का क्या अर्थ मानते हो? नाशक या नाश? इस प्रकार, बौद्धों द्वारा विस्तृत व्याख्या में अपने मत की पुष्टि एवं जैनमत की समीक्षा की चर्चा के उपरान्त पुनः जैनों से यह प्रश्न पूछे जाने की चर्चा है कि घट और नाश- इन दोनों में किस प्रकार का संबंध है- क्या उनमें कार्य-कारण-भाव का संबंध है ? या 2. संयोग-संबंध है या 3. विशेष्य-रूप संबंध है या 4. अविष्वकभाव, अर्थात् अभेदरूप-संबंध है ? चौथे अभेदरूप संबंध में फिर बौद्धों द्वारा यह चर्चा उठाई गई है कि आप जैन कदाचित् अभेद-संबंध मानो, तो कौनसा अभेद-संबंध मानोगे ? अन्ततः, बौद्धों ने अपने मत की पुष्टि में अपने सिद्धांत को ही उपयुक्त बताकर विस्तृत व्याख्या करते हुए अपने पूर्वपक्ष के उत्तरपक्ष के समान होने की चर्चा मिलती है। बौद्धों के पूर्वपक्ष की विस्तृत समीक्षा की चर्चा के उपरान्त जैनाचार्य रत्नप्रभसूरि जैनों के उत्तर-पक्ष के रूप में रत्नाकरावतारिका के पंचम परिच्छेद में बौद्धों की समीक्षा में चर्चा की है कि जब पदार्थ की उत्पत्ति सहकारी कारणों से होती है, तो विनाश भी किन्हीं सहकारी-कारणों से ही होगा, अतः, यहाँ पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002744
Book TitleBauddh Darshan ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotsnashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy