________________
रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविधि मंतव्यों की समीक्षा
397
का स्पष्टीकरण आवश्यक है, क्योंकि जिस स्थान (पक्ष) में हेतु होता है, वहीं साध्य की सिद्धि होती है।
प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध के तेरहवें अध्याय में रत्नप्रभसरि द्वारा बौद्धों के शून्यवाद का प्रस्तुतिकरण और उसकी समीक्षा विस्तार से की गई है। उन्होंने इस तथ्य को भी ध्यान में रखा है कि शून्यवादी अपने पक्ष के समर्थन में किस-किस प्रकार के तर्क उपस्थित कर सकते हैं, उन्होंने उनको भी प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया है, किन्तु यदि हम गहराई से चिंतन करें, तो रत्नप्रभसूरि ने शून्यवाद के खंडन के लिए उसी शैली का सहारा लिया है, जिस शैली के आधार पर शून्यवादी अपने मत का प्रस्तुतिकरण करते हैं। जिस प्रकार शून्यवादी अपने पक्ष के समर्थन में यह कहते हैं कि वस्तु न सतरूप हो सकती है, न असत्प , न उभयरूप हो सकती है, न अनुभयरूप, उसी प्रकार रत्नप्रभसूरि भी उसी शैली का आश्रय लेते हुए उसका खंडन निम्न रूप में करते हैं। वे कहते हैं कि आपका यह शून्यवाद प्रमाण से सिद्ध है ? या अप्रमाण से सिद्ध है ? या प्रमाण और अप्रमाण- दोनों से सिद्ध है ? या प्रमाण और अप्रमाण-दोनों से सिद्ध नहीं है? यदि आप यह कहते हैं कि प्रमाण से सिद्ध है, तो प्रमाण की सत्ता को स्वीकार करने से आपका शून्यवाद खंडित हो जाता है। यदि आप यह कहते हैं कि अप्रमाण से सिद्ध हैं, तो अप्रमाण से तो कुछ भी सिद्ध नहीं हो सकता, अतः, शून्यवाद भी सिद्ध नहीं होगा। यदि आप कहें कि प्रमाण और अप्रमाण- दोनों से ही सिद्ध है, तो आपके अनुसार ही परस्पर विरोध होगा, क्योंकि प्रमाण और अप्रमाण- दोनों परस्पर विरोधी हैं और यदि आप यह कहें कि प्रमाण और अप्रमाण- दोनों से सिद्ध नहीं है, तो इसका अर्थ तो यही हुआ कि आपका शून्यवाद दोनों से सिद्ध नहीं है। इस प्रकार, हम देखते हैं कि जहाँ-जहाँ शून्यवादियों ने उभयतोपाश खड़ा करके जैनों का खंडन किया है और शून्यवाद को पुष्ट करने का प्रयत्न किया है, वहाँ-वहाँ रत्नप्रभसूरि ने भी उस उभयतोपाश को निरस्त करने के लिए उसका विरोधी उभयतोपाश खड़ा करके शून्यवाद का खंडन कर दिया है। इस प्रकार, हम देखते हैं कि शून्यवादी अपने पक्ष को सिद्ध करने में जिस उभयतोपाश को उपस्थित करते हैं, उसके ठीक विरोधी उभयतोपाश को प्रस्तुत करके रत्नप्रभसूरि उसका खंडन कर देते हैं। इससे यह फलित होता है कि रत्नप्रभसूरि बौद्धों के सिद्धांतों की समीक्षा के लिए उसी शैली का अनुसरण करते हैं, जो शैली बौद्ध-दार्शनिक अपने पक्ष की पुष्टि के
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org