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रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविध मन्तव्यों की समीक्षा
कैसे होगा? अतः, क्रिया और कर्ता के एकान्त-अभेद का पक्ष या एकान्तभेद का पक्ष समुचित नहीं है। क्रिया और कर्ता- दोनों कथंचित-भिन्न हैं और कथंचित-अभिन्न हैं- यही मान्यता जैन-दर्शन के अनेकान्तवाद-सिद्धांत के आधार पर तर्कसंगत सिद्ध होती है।
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