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रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविधि मंतव्यों की समीक्षा
ईश्वर के आप्तत्व एवं कपिल के आप्तत्व की समीक्षा के उपरांत कारिका क्रमांक चौरासी में सुगत के आप्तत्व की समीक्षा की गई है। आचार्य विद्यानंदी ने इसमें बौद्धों के विज्ञानाद्वैत की विशेष रूप से समीक्षा प्रस्तुत की है। इसके अतिरिक्त जैसा हम पूर्व में निर्देश कर चुके हैं, विद्यानंदी ने अष्टसहस्री में भी बौद्धों की विस्तृत समीक्षा की है। 8. वादिराजसूरि एवं उनका न्यायविनिश्चय–विवरण -
दिगम्बर-परंपरा के जैन आचार्यों में जैन-न्याय के समर्थ लेखकों में वादिराजसूरि भी प्रमुख हैं। ज्ञातव्य है कि वादिराज का श्वेताम्बर आचार्य वादिदेवसूरि से सिद्धसेन की सभा में वाद हुआ था। इस आधार पर इनका काल विक्रम की ग्यारहवीं शताब्दी के लगभग माना जा सकता है। वादिराज ने पार्श्वनाथ चरित्र की रचना शक-संवत् 947 में की थी, तदनुसार वे विक्रम संवत् 1081 में जीवित थे। वादिराज का सिद्धराज के पूर्व चालुक्य नरेश जयसिंहदेव की राजसभा में बड़ा सम्मान था। यह ज्ञातव्य है कि रत्नाकरावतारिका के रचयिता रत्नप्रभसूरि के गुरु श्वेताम्बर आचार्य वादिदेवसरि दिगम्बर आचार्य वादिराजसूरि के समकालीन ही थे, साथ ही दोनों जैन-न्याय के उद्भट विद्वान् भी थे। वादिराजसूरि ने अकलंक के 'न्यायविनिश्चय पर एक विस्तृत विवरण लिखा था। उनकी यह विशेषता है कि वे अकलंक के एक-एक श्लोक के चार-पाँच अर्थ भी सरल रूप से निकाल लेते थे। वादिराज का 'न्यायविनिश्चय-विवरण बीस हजार श्लोक-परिमाण है। बौद्ध-दर्शन की समीक्षा की दृष्टि से इसमें सर्वाधिक समीक्षा धर्मकीर्ति के प्रमाणवार्त्तिक और प्रज्ञाकर-गुप्त के प्रमाणवार्त्तिकालंकार की है। वादिराज के न्यायविनिश्चयविवरण के अतिरिक्त उनका जैन-न्याय का प्रमाण-निर्णय भी मिलता है। यह एक लघुकाय और स्वतंत्र रचना है। इसमें चार परिच्छेद हैं- 1. प्रमाणलक्षण-निर्णय, 2. प्रत्यक्ष-निर्णय, 3. परोक्ष प्रमाण-निर्णय और 4. आगम-निर्णय। यहाँ यह ज्ञातव्य है कि वादिराज ने अपने इस ग्रन्थ को अकलंक के प्रमाणवार्तिक के आधार पर ही बनाया था, अतः, तदनुसार ही उन्होंने मूल में तीन प्रमाणों की चर्चा करके अनुमान के भेद के रूप में स्मृति, प्रत्यभिज्ञा और तर्क का प्रतिपादन किया है। यद्यपि हमारी दृष्टि में ये तीनों अनुमान से भिन्न हैं, क्योंकि अनुमान जिस व्याप्ति-संबंध के आधार पर खड़ा होता है, उसकी स्थापना तो इन तीनों प्रमाणों द्वारा ही होती है।
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