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________________ 344 रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविध मन्तव्यों की समीक्षा हैं कि तुम्हारा यह शून्यवाद प्रमाण से सिद्ध है ? या अप्रमाण से सिद्ध है ? यदि आप यह कहते हैं कि प्रमाण से सिद्ध है, तो आपने प्रमाण की सत्ता को स्वीकार कर लिया है, फलतः आपका शून्यवाद खण्डित हो गया। पुनः, यदि इसे प्रमाण से सिद्ध मानते हैं, तो आपको यह भी सिद्ध करना होगा कि वह प्रमाण ज्ञानरूप है ? या पदार्थरूप है ? यदि ज्ञानरूप मानेंगे, तो ज्ञान की सत्ता सिद्ध होगी। यदि पदार्थरूप मानेंगे, तो पदार्थ की सत्ता सिद्ध होगी। इस प्रकार, आपका शून्यवाद तो खण्डित हो जाएगा। यदि अप्रमाण से सिद्ध करना चाहें, तो यह भी असंभव है, क्योंकि अप्रमाण से तो कुछ भी सिद्ध नहीं होता है। इस प्रकार, से आपका शून्यवाद खण्डित हो जाता है। 528 बौद्ध - इस पर, यदि शून्यवादी यह तर्क करते हैं कि हम तो प्रमाण को भी शून्यरूप ही मानते हैं, क्योंकि हमारे अनुसार तो शून्य ही परमतत्त्व है। जैन - इसके प्रत्युत्तर में, आचार्य रत्नप्रभ कहते हैं कि यदि आप प्रमाण को भी शून्यरूप मानेंगे, तो ऐसी स्थिति में उससे आपकी शून्यता की सिद्धि भी संभव नहीं होगी, क्योंकि जो स्वयं शून्य है, वह अन्य को सिद्ध ही कैसे करेगा।29 इसके प्रत्युत्तर में, पुनः शून्यवादी यह तर्क देते हैं कि हमारे सिद्धांतानुसार तो उपर्युक्त किसी भी प्रमाण से पदार्थ की सत्ता सिद्ध नहीं होती, अतः, शून्यता ही एकमात्र परमतत्त्व है।530 __इसके प्रत्युत्तर में, आचार्य रत्नप्रभसूरि शून्यवादियों पर व्यंग्य करते हुए कहते हैं कि आपका शून्यवाद तो एक ऐसे व्यक्ति के समान है, जो सांकल से जकड़ा होकर कूदने का अभ्यास करे। आप शून्यवाद को ही परमतत्त्व मानते हैं, तो वह शून्यवादीरूपी परमतत्त्व कोई वस्तु. है ? या विचार है ? यदि तुम उसे विचार कहते हो, तो तुमने विचार की सत्ता तो मान ही ली है, किन्तु यदि 'विचार' को सदवस्तु मानेंगे, तो शून्यवाद कैसे सिद्ध होगा? और यदि 'विचार' को सद्वस्तु नहीं मानेंगे, तो भी शून्यता की सिद्धि कैसे होगी ? असत् से कुछ भी सिद्ध नहीं होता है। पुनः, यदि 528 रत्नाकरावतारिका, भाग I, रत्नप्रभसूरि, पृ. 88 529 रत्नाकरावतारिका, भाग I, रत्नप्रभसूरि, पृ. 88 550 रत्नाकरावतारिका भाग I, रत्नप्रभसूरि, पृ. 88 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002744
Book TitleBauddh Darshan ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotsnashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size19 MB
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