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________________ रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविधि मंतव्यों की समीक्षा 23 हेतु के त्रिलक्षण मान रहे थे। इस प्रकार, दोनों के मंतव्यों में मतभेद था। यद्यपि न्यायावतार में मूल-कारिकाओं में सिद्धसेन ने बौद्धों का स्पष्ट नाम लेकर कोई खण्डन नहीं किया है, किन्तु उनकी स्थापनाएँ इतना तो अवश्य ही सिद्ध करती हैं कि न्याय के क्षेत्र में उनका कुछ बातों को लेकर बौद्धों से मतभेद था। सिद्धसेनदिवाकर ने बौद्धों का स्पष्ट रूप से खंडन अपनी द्वात्रिंशिकाओं में किया है। आगे हम इसी पर कुछ प्रकाश डालने का प्रयत्न करेंगे - सिद्धसेन की प्रथम और द्वितीय-द्वात्रिंशिका में मुख्य रूप से जैन-तत्त्व-ज्ञान और जैन आचार का वर्णन है, किन्तु इनमें ब्रह्मा, महेश्वर (शिव) और पुरुषोत्तम (विष्णु)- इन तीन नामों को वस्तुतः जैन-तीर्थकर में घटित होने का प्रतिपादन किया गया है। यही बात हमें बौद्ध-ग्रन्थ सद्धर्मपुण्डरीक में भी उपलब्ध होती है। बौद्ध-विद्वानों ने इस ग्रन्थ में बुद्ध को ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर एवं स्वयंभू- इन नामों से संबोधित किया है। तीसरी बत्तीसी से लेकर सातवीं बत्तीसी तक की बत्तीसियाँ बत्तीसी-पंचक के नाम से जानी जाती हैं। इनमें छठवीं बत्तीसी में बौद्धसम्मत बुद्ध (सुगत) के आप्तत्व का उनके मंतव्यों में विरोध दिखाकर खंडन किया गया है। सातवीं बत्तीसी मुख्य रूप से औपनिषदिक-मान्यताओं को प्रस्तुत करती है। इसी प्रकार, नौवीं वेदवाद नामक बत्तीसी में सिद्धसेन ने वैदिक-मान्यताओं का प्रस्तुतिकरण किया है। बत्तीसियों के इस क्रम में बारहवीं बत्तीसी में न्यायदर्शन का, तेरहवीं बत्तीसी में सांख्यदर्शन का, चौदहवीं बत्तीसी में वैशेषिक दर्शन का और पन्द्रहवीं बत्तीसी में बौद्धदर्शन के शून्यवाद आदि का वर्णन कर उसकी समीक्षा प्रस्तुत की गई है। इस प्रकार, हम देखते हैं कि सिद्धसेन की बत्तीसियों में पन्द्रहवीं बत्तीसी बौद्धदर्शन और उसकी शाखाओं की समीक्षा से संबंधित है। इससे यह भी स्पष्ट हो जाता है कि सिद्धसेन के काल तक बौद्ध-परंपरा में विज्ञानवाद और शून्यवाद का विकास हो चुका था और सिद्धसेन ने इनकी समीक्षा भी प्रस्तुत की थी। पं. दलसुखभाई मालवणिया ने न्यायावतारवार्त्तिकवृत्ति के सिंधी सिरीज़ से प्रकाशित संस्करण में 'न्यायावतार की तुलना' शीर्षक के अन्तर्गत प्रथम-परिशिष्ट में न्यायावतार की अनेक बौद्ध-मन्तव्यों के साथ विस्तृत एवं मार्मिक तुलना की है। उस तुलना पर यदि हम गम्भीर रूप से विचार 13 प्रमाणवार्त्तिक, 3/14 (जैन-दर्शन – (महेन्द्र.) पृ 242) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002744
Book TitleBauddh Darshan ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotsnashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size19 MB
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