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________________ रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविधि मंतव्यों की समीक्षा में जोता जाकर बोझा ढोता है। दूसरे, कालक्रम में भी एक ही बैल अनेक क्रिया करने वाला होता है, साथ ही प्रत्येक बैल भिन्न-भिन्न काल में भिन्न-भिन्न क्रिया करने में समर्थ होते हैं। इस प्रकार, 'गो' जाति में भी प्रत्येक गाय कि क्रियाएं भिन्न-भिन्न होती हैं। इस प्रकार, एक ही गाय में अनेक प्रकार के क्रियाकारित्व के गुण रहे हुए हैं। यह बात तो प्रत्यक्ष - प्रमाण से भी सिद्ध होती है । यद्यपि यह बात ठीक है कि ऊपर से गो जाति की क्रियाएँ एक जैसी दिखाई दे सकती हैं, जैसे कि सब गायें दूध देती हैं, रँभाती हैं, घास खाती हैं और गोमाता कहलाती हैं। आपके सिद्धान्तानुसार अनेक बैलों को तथा अनेक गायों को एक ही मानना तथा गाय और बैल में भी एकरूपता मानना होगा, परन्तु आपका यह कथन तो सर्वथा मिथ्या है। इस प्रकार, आपने जो कथन किया कि स्वयं व्यावृत्ति स्वरूप वाले स्वलक्षणरूप परमाणुओं में 'यह घट हैं- इस प्रकार की एकाकारता मानना सर्वथा अनुचित है। 25 दूसरा पक्ष, यदि यह कहते हैं कि गाय और बैल में एक प्रकार की समानता है, तो इस समानता ( सदृशता ) का तात्पर्य क्या है ? 1. यह इसके समान है, ऐसी सदृशता का आधार है ? या 2. अन्य (इतर) पदार्थों की व्यावृत्ति होने का आधार है ? अथवा गाय और बैल में समानता है ? या गाय और बैल में विसदृशता है ? इन दोनों पक्षों में से आपको कौनसा पक्ष मान्य है | 236 आचार्य रत्नप्रभसूरि बौद्धों से कहते हैं कि आपके अनुसार गाय और बैल में गो जाति के होने के कारण समानता है, या यह गाय इस गाय के समान है, या यह बैल इस बैल के समान है - इस प्रकार, की समानता है । आपका यह प्रथम पक्ष तो उचित नहीं है, क्योंकि बौद्ध दर्शन में तो सभी पदार्थ क्षणिक होने से तथा परस्पर अत्यन्त भिन्न होने से तथा 'अन्वय' का अभाव होने से 'सदृश - परिणामता तो स्वीकार ही नहीं है, अर्थात् कोई भी पदार्थ किसी के समान (सदृश ) है ही नहीं। जब एक बैल स्वयं दूसरे समय में स्वयं के समान ही नहीं रहता है, तो दूसरे बैल के साथ उसकी कैसे तुलना करेंगे कि यह बैल इस बैल के समान है, अथवा यह गाय इस गाय के समान है, अतः आपके बौद्धदर्शन में एक-दूसरे के 235 रत्नाकरावतारिका, भाग II रत्नप्रभसूरि, पृ. 622 236 रत्नाकरावतारिका, भाग II, रत्नप्रभसूरि, पृ. 622 Jain Education International 195 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002744
Book TitleBauddh Darshan ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotsnashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size19 MB
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