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रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविधि मंतव्यों की समीक्षा
जैन इस पर जैनाचार्य रत्नप्रभसूरि बौद्धों की समीक्षा करते हुए कहते हैं कि जिस प्रकार सही हेतु वाला अनुमान ही प्रमाणरूप है, उसी प्रकार अनाप्त विप्र-तारक - पुरुष का कथन, तुंबी डूब रही है, सत्य न होने के कारण अनाप्त - पुरुष के शब्द ही पदार्थ के साथ प्रतिबद्ध (संबंद्ध ) न होने के कारण अप्रमाण होते हैं, किन्तु आप्तपुरुष के वचन में शब्द की वाच्य - वस्तु से संबद्धता होने पर उनके वचन को तो प्रमाण मानना चाहिए । यदि आप शब्द को प्रमाण मान लेते हैं, तो अनुमान को प्रमाण मानने के समान ही शब्द की प्रामाणिकता भी मान ली जाएगी। 223
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बौद्ध बौद्ध - दार्शनिक अपने सिद्धांत की पुष्टि करने के लिए जैनाचार्य रत्नप्रभसूरि से कहते हैं कि आप जो यह तर्क दे रहे हैं कि आप्तपुरुष के वचन होने के कारण वे शब्द प्रमाणरूप होना चाहिए, किन्तु हमारा आपसे यह प्रतिप्रश्न है कि कौनसे वचन आप्तपुरुष के हैं, जिसे प्रमाण माना जाए ? कौनसे वचन अनाप्त - पुरुष के हैं, जिसे अप्रमाण माना जाए? इसका क्या आधार है ? आप्तपुरुष ओर अनाप्त-पुरुष का विवेक सम्भव नहीं होने के कारण ही हम तो सभी शब्दों को अप्रमाणरूप ही मानते हैं, अर्थात् शब्द की कोई स्वतंत्र सत्ता न होने के कारण शब्द प्रमाणरूप नहीं हो सकता । 224
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जैन- दार्शनिक रत्नप्रभसूरि की अपोहवाद की समीक्षा
बौद्धों द्वारा उठाए गए प्रश्न के समाधान में जैनाचार्य रत्नप्रभ पुनः बौद्धों से ही प्रतिप्रश्न करते हैं कि आप (बौद्ध) हमारे इन प्रश्नों का जवाब दें- 1. क्या संसार में आप्तपुरुष का अभाव होने के कारण ? या 2. क्या संसार में आप्तपुरुष तो होते हैं; किन्तु ये आप्तपुरुष हैं तथा ये आप्तपुरुष नहीं हैं- ऐसा विवेक नहीं होने के कारण ? या 3. आप्तपुरुष और अनाप्त-पुरुष का निश्चय हो जाने के बाद भी जो आप्तपुरुष होते हैं, वे मौनव्रत वाले होते हैं- इस आधार पर आप ऐसा कहते हैं ? या 4. आप्तपुरुष तो बोलते हैं, अर्थात् वे मौनव्रत वाले नहीं हैं, किन्तु अनाप्त - पुरुष के वचन से आप्तपुरुष के वचन को पहचानने का विवेक नहीं होने से, अर्थात् दोनों के वचनों में भेद करना संभव नहीं होने के कारण ? आपने जो यह कथन किया कि आप्त और अनाप्त का भेद करना
'रत्नाकरावतारिका, भाग II 224 रत्नाकरावतारिका, भाग II
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रत्नप्रभसूरि, पृ. 617 रत्नप्रभसूरि, पृ. 618
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