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________________ रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविधि मंतव्यों की समीक्षा शब्द और अर्थ में उनका वाच्य-वाचक- संबंध भिन्न-भिन्न है- ऐसा कहें, तो यह प्रश्न उठता है कि वह शब्द और अर्थ का वह संबंध प्रत्येक वाच्य वस्तु और वाचक शब्द के साथ सम्बद्ध होकर रहता है, या असम्बद्ध होकर ? यदि वह असम्बद्ध होकर रहता है, तो फिर घट शब्द से पट की और पट शब्द से घट की प्रतीति होना चाहिए, क्योंकि घट और पट- इन दोनों अर्थों (पदार्थों में वाच्य - वाचकभावरूप संबंध की असम्बद्धता समान ही है। यदि सम्बद्ध कहा, तो फिर वे तादात्म्य रूप से सम्बद्ध हैं, या तदुत्पत्ति रूप से ? यह बताना होगा। यदि यह मानते हैं कि वे तादात्म्य रूप से सम्बद्ध हैं तो यह मानना उचित नहीं होगा, क्योंकि जहाँ तादात्म्य होता है, वहाँ अभेद होता है तथा अभेद में कोई संबंध हो ही नहीं सकता है । इसके विपरीत, यह मानें कि शब्द और अर्थ से उनका वाच्य - वाचक - संबंध भिन्न होकर संबद्ध है, किन्तु यदि यह पक्ष स्वीकार करते हैं, तो उनमें तादात्म्य - संबंध नहीं होगा, क्योंकि तादात्म्य-संबंध में तो शब्द और अर्थ में और उनके वाच्य - वाचक - संबंध में अभेद होता है। 174 पुनः, उनमें तदुत्पत्ति-संबंध भी नहीं होगा, क्योंकि शब्द और अर्थ के बीच तदुत्पत्ति - संबंध मानने पर पुनः इन चार विकल्पों में से कोई एक मानना होगा 1. शब्द और अर्थ के मध्य उनके वाच्य - वाचक-संबंध की उत्पत्ति उनके वाच्यय - अर्थ की उत्पत्ति के समय होती है ? 167 2. शब्द और अर्थ के मध्य वाच्य - वाचक - सम्बन्ध की उत्पत्ति उनके वाचक शब्द की उत्पत्ति के समय होती है ? 3. शब्द और अर्थ के मध्य वाच्य - वाचक - सम्बन्ध की उत्पत्ति, शब्द एवं अर्थ की उत्पत्ति- ये तीनों ही उत्पत्ति एक साथ एक समय में ही होती हैं? अथवा 4. एक की उत्पत्ति होने के पश्चात् दूसरे की उत्पत्ति होती है, अर्थात् अर्थ के बाद शब्द की या शब्द के बाद अर्थ की, उसके बाद उनके सम्बन्ध की उत्पत्ति क्रमपूर्वक होती है ?175 174 'रत्नाकरावतारिका, भाग I, रत्नप्रभसूरि, पृ. 19 175 रत्नाकरावतारिका, भाग I, रत्नप्रभसूरि, पृ. 19, 20 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002744
Book TitleBauddh Darshan ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotsnashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size19 MB
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