________________
164
रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविध मन्तव्यों की समीक्षा चक्षइन्द्रिय के विषय होते हैं, श्रोत्रेन्द्रिय के नहीं। इस प्रकार, आपका यह तादात्म्य-संबंध युक्तिसंगत नहीं है।' नैयायिकों का तदुत्पत्ति-संबंध -
नैयायिकों के मत में तदुत्पत्ति-संबंध का अभिप्राय शब्द से अर्थ की उत्पत्ति होती है। उनके मत में बिना शब्द के अर्थ की उत्पत्ति नहीं होती।163
इस पर, बौद्ध-दार्शनिक धर्मोत्तर के माध्यम से रत्नप्रभसरि नैयायिकों से यह प्रश्न करते हैं- क्या आपके मत में तदुत्पत्ति-संबंध का अभिप्राय, शब्द से अर्थ की उत्पत्ति होती है- ऐसा है, या अर्थ से शब्द की उत्पत्ति होती है- ऐसा है ?
बौद्ध-दार्शनिक धर्मोत्तर द्वारा तदुत्पत्ति-संबंध पर उठाई गई शंकाओं का प्रस्तुतिकरण रत्नाकरावतारिका के टीकाकार आचार्य रत्नप्रभसूरि स्वयं इसी कृति में करते हैं। वे लिखते हैं कि यदि शब्द से अर्थ की उत्पत्ति होती हो, तो घट, पट, कलश, कुंभ आदि शब्दों के उच्चारण करने के साथ ही इन पदार्थों की उत्पत्ति हो जाना चाहिए। यदि ऐसा होता, तो फिर घट, पट, कलश, कुंभ आदि पदार्थों के कर्ता को सभी सामग्री एकत्रित करके इनको बनाने की आवश्यकता ही क्यों होती ? फिर तो, रत्नाकरावतारिका नामक इस ग्रन्थ के लेखन के लिए लेखक को भी कोई प्रयत्न करने की आवश्यकता नहीं थी। आदिवाक्य के उच्चारण मात्र से ही इस ग्रन्थ-लेखन का कार्य पूर्ण हो जाना चाहिए था। फिर तो, इस ग्रन्थ के लेखन हेतु पुरुषार्थ ही क्यों किया जाता? अतः, अर्थ से शब्द की उत्पत्ति मानना भी उचित नहीं हैं, क्योंकि यह तो सर्वानुभव से सिद्ध है कि शब्द की उत्पत्ति होठ, जीभ, दांत आदि से होती है और पदार्थों की उत्पत्ति उनके अपने-अपने कारणों से होती है। 185
पुनः, पदार्थ से भी शब्द की उत्पत्ति नहीं हो सकती है। चूंकि पदार्थों की उत्पत्ति के हेतु और शब्दों की उत्पत्ति के हेतु भिन्न-भिन्न हैं, अतः, शब्द से अर्थ की या अर्थ से शब्द की उत्पत्ति मानने वाला
162 रत्नाकरावतारिका, भाग I, रत्नप्रभसूरि, पृ. 17 163 रत्नाकरावतारिका, भाग I, रत्नप्रभसूरि, पृ. 18 164 रत्नाकरावतारिका, भाग I, रत्नप्रभसूरि, पृ. 18 165 रत्नाकरावतारिका, भाग I, रत्नप्रभसूरि, पृ. 18
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org