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________________ रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविधि मंतव्यों की समीक्षा 129 करता है, उसी प्रकार मुदगर आदि विनाशक कारणभूत सामग्री के सामूहिक-सहकार से मिट्टीस्वरूप उपादान-कारण से उत्पन्न घटात्मक कार्य का किसी के द्वारा विनाश भी होता है। वस्तुतः, पदार्थ की उत्पत्ति और नाश-निमित्तभूत कारण-सामग्री भिन्न-भिन्न होती है, अतः, उत्पत्ति और विनाश- दोनों ही सहेतुक हैं, निर्हेतुक नहीं हैं। उपादान-कारणरूप मिट्टी से घट का अभेद-संबंध है, तो कुम्हार, दण्ड, चक्र, चीवर आदि निमित्त-कारणरूप सामग्री से घट का भेद-सम्बन्ध है। घट की उत्पत्ति और घट का नाश- दोनों ही सहेतुक हैं। विनाशक-सामग्री से जो घट का नाश हुआ है, वह नाश केवल घट के पर्याय का नाश हुआ है, घटाकारता का नाश हुआ है, मिट्टीरूपी द्रव्य का नाश नहीं हुआ है। उत्पत्ति और नाश द्रव्य का स्वभाव नहीं है, वह तो उसकी पर्याय का स्वभाव है। मिट्टी तो द्रव्यरूप है, वह नित्य ही रहती है। उत्पत्ति और नाश उसकी घटरूप पर्याय अर्थात घटाकारता का होता है। घट के नाश होने पर घट के जो खण्ड (टुकड़े) होते हैं, वे खण्ड (कपाल) घट से एकांत- भिन्न भी नहीं हैं और एकांत-अभिन्न भी नहीं हैं, क्योंकि घट और घट के टुकड़ों- दोनों में मिट्टीरूप द्रव्य तो नित्य रहा हुआ है, किन्तु दोनों ही मिट्टी की पर्याय होने से अभेदरूप हैं और पर्यायों के बदलने के कारण दोनों भेदरूप भी हैं। उन दोनों में एकान्त-भिन्नता भी नहीं है और एकान्त-अभिन्नता भी नहीं है। बौद्धों ने जैनों के नाश को भिन्न मानने में जो दोष दिखाए हैं, वे एकान्त-भिन्नता मानने पर आते हैं, किन्तु कथंचित्-भिन्नता मानने में तो कोई भी दोष नहीं आता है। घट और घट के टुकड़ों अर्थात् कपाल में मिट्टीरूपी एक ही द्रव्य होने से अभिन्नता या तादात्म्यता सदा ही रहती है। चूंकि घट में भी मृत्तिका (मिट्टी) है और विनाश को प्राप्त घट के टुकड़ों (कपाल) में भी मृत्तिका (मिट्टी) है, इसलिए उन्हें एकान्त-भिन्न नहीं कह सकते हैं। घट-पर्याय का विनाश भी एकान्त-विनाश नहीं है, क्योंकि वह घटाकारतारूप पर्याय का विनाश है, मिट्टीरूप द्रव्य का विनाश नहीं है। विनाश के समय में जो विनाशात्मकता है, वह विनाशात्मकता मात्र घट-पर्याय या घटाकारता की ही नाशक है, मिट्टी-द्रव्य की विनाशक नहीं है। विनाश के समय में भी घट-पर्याय का विनाश होता है, घट के मिट्टीरूप द्रव्य का नहीं। घट और घट के टुकड़े में मिट्टीरूपी द्रव्य के कारण एकान्तभेद नहीं होने के उपादान-कारणरूप मिट्टी दोनों में ही तादात्म्य-रूप से रहती है।10 110 रत्नाकरावतारिका, भाग II, रत्नप्रभसूरि, पृ. 728. 729 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002744
Book TitleBauddh Darshan ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotsnashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size19 MB
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