SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 129
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविधि मंतव्यों की समीक्षा 127 चक्र, चीवर आदि निमित्तभूत कारणों से एकान्ततः भिन्न मानना भी उचित नहीं है, क्योंकि उन्हीं से घटादि रूप कार्य उत्पन्न हुए हैं। उन निमित्त एवं उपादान-कारणों के बिना घटादि की उत्पत्ति हुई है- ऐसा भी नहीं कह सकते हैं। यदि कदाचित् यह मानें कि उत्पत्ति के कारणों के घटादि कार्यों से भिन्न होते हुए भी घटादि की उत्पत्ति हुई है- ऐसा ही मानेंगे, तो फिर उत्पत्ति से ही पटादि अन्य कार्य भी उत्पन्न हो सकते हैं- ऐसा क्यों नहीं मान लेते हैं? जिस प्रकार घटादि कार्य उनकी उत्पत्ति के कारणों से भिन्न हैं, उसी प्रकार पटादि कार्य भी अपनी उत्पत्ति के कारणों से भिन्न हैं। अपनी उत्पत्ति के कारणों से तो घट भी भिन्न है और पट भी। अपने कारणों से भिन्नता तो घट और पट- दोनों में ही समान रूप से रही हुई है, अतः, दोनों के लिए भिन्न-भिन्न कारणों की क्या आवश्यकता है। यहाँ जैन बौद्धों से कहते हैं कि आप बौद्ध-दार्शनिक अपने पक्ष का बचाव करने के लिए कदाचित ऐसा कहते हैं कि उत्पद्यमान, अर्थात उत्पन्न होते हए घट, कलश आदि पदार्थ मिट्टी से ही उत्पन्न होने के स्वभाव वाले होने से उनका उत्पाद करने वाला कुम्हार दंड, चक्र, चीवर आदि सहकारी-कारणों द्वारा मिट्टी से ही घटादि को उत्पन्न करता है। जिस प्रकार की उपादान एवं निमित्त-कारण-सामग्री से घटादि की ही उत्पत्ति होती है, उसी से पटादि की नहीं हो सकती है, क्योंकि पटादि की कारणभूत सामग्री भिन्न होती है। घटादि की उत्पत्ति में सत् तन्तुवाय, करघा आदि कारण-सामग्री होती है, जो घटादि की कारणभूत सामग्री से भिन्न है, किन्तु आप बौद्धों का यह कथन भी युक्तिसंगत नहीं है, क्योंकि जब पूर्व में हम जैनों ने यह सिद्धांत प्रस्तुत किया था कि घट के नाश के कारणों का घट के साथ संबंध होने से इनसे घट का नाश हुआ- ऐसा ही कहा जाता है, किन्तु इनसे पट का नाश हुआ- ऐसा नहीं कहा जा सकता है, यह तर्क हम जैनों द्वारा प्रस्तुत किए जाने पर आप बौद्धों ने ही हमारे खण्डन हेतु यह तर्क प्रस्तुत किया था कि आप जैन यह बताइए कि घटादि पदार्थों और उसके नाश के हेतु के मध्य कौनसा संबंध होता है ? पूर्व में जो आपने हमारे विरुद्ध निम्न चार प्रश्न उपस्थित किए थे कि घटादि पदार्थों और उनके नाश के मध्य 1. क्या कार्य-कारण-संबंध है? या 2. संयोगसंबंध है? या 3. विशेष्य-विशेषण-संबंध है ? या 4. अविष्वकभाव-संबंध है ? इन चारों में से आप जैन कौनसा संबंध मानते हैं ? इस प्रकार, नाश के प्रकरण में आप बौद्धों ने हम जैनों के विरुद्ध जो आपत्तियाँ उठाई थीं, अब हम जैन भी आप बौद्धों के उत्पाद को सहेतुक मानने के संबंध में उपर्युक्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002744
Book TitleBauddh Darshan ka Samikshatmak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotsnashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages404
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy