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सगुणाण निग्गुणाण य गरुया पालन्ति जं जि पडिवन्न । पेच्छइ वसहेण समं हरेण बोलाविओ अप्पा ॥ ७० ॥ छिज्जउ सीसं अह होउ बन्धणं चयउ सव्वहा लच्छी। पडिवन्नपालणे सुपुरिसाण जं होइ तं होउ ।। ७१॥
दिढलोहसकालाणं अन्नाण वि विविहपासवन्धाणं । ताणं चिय अहिययरं वायावन्धं कुलीणस्स ।। ७२ ॥
(वज्जालगं)
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