________________
प्रकाशक का निवेदन
गूजरात विद्यापीठ द्वारा प्रकाशित 'प्राकृतकथासंग्रह' बहुत समय से अलभ्य हो गया था । अर्धमागधी भाषा के विद्यार्थाओं को वह पुस्तक ठीक उपयोगी होने से उसकी मांग चालू थी । इससे उसकी द्वितीयावृत्ति शीघ्र प्रकाशित करने का निर्णय किया गया ।
किन्तु, द्वितीयावृत्ति तैयार करने के वख्त ऐसा समझा गया कि उस पुस्तक को सविशेप उपयोगी करने के लिये उसकी कथायें विशिष्ट दृष्टिबिंदु से, और प्राकृत साहित्य के विविध अङ्गों का यथोचित परिचय दे सके ऐसी वैविध्ययुक्त करने के ख्याल से पुनः पसंद करने की जरूर है। इससे वह कार्य प्राकृत व्याकरण और साहित्य के प्रसिद्ध विद्वान पंडित वेचरदासजी को सुप्रत किया गया । उन्होंने सविशेष श्रम से विविध ग्रंथों में से यह कथायें एकत्रित की । किन्तु उनको प्रकाशित करने के पहिले गत स्वातंत्र्य-युद्ध में गूजरात विद्यापीठ और उसके सेवकगण सामिल हो गये। इससे इतने समय वाद यह ग्रंथ प्रकाशित किया जाता है। भाशा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org